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४४८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ७, २२७. एदं लोगपूरणमस्सिदण भणिदं । वासदो उत्तसमुच्चयत्थो । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २२७ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २२८ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। छचोदसभागा वा देसूणा ॥ २२९ ॥
देव-णेरइएहि मणुस्सेसुप्पज्जमाणेहि. चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइ. ज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, एक्कारहरज्जुदीह-पणदालीसजायणलक्खरुंदखेत्तस्स उवलंभादो। ण च एत्तियमेत्तं चेवेत्ति णियमो अस्थि, अण्णस्स वि तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तस्स उवलंभादो । एसो वासदत्यो। तिरिय-मणुस्सेहिंतो देवेसुप्पण्णेहि छचोहसभागा फोसिदा ।
... यह सूत्र लोकपूरणसमुद्घातका आश्रय कर कहा गया है। वा शब्द पूर्वोक्त अर्थके समुच्चयके लिये है।
उक्त सस्यग्दृष्टि जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ॥ २२७ ॥ यह सूत्र सुगम है।
सम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ २२८ ।।
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि वर्तमान कालकी विवक्षा है।
अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २२९ ॥
मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले देव-नारकियोंके द्वारा चार लोकोंका असंख्यातयां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, यहां ग्यारह राजु दीर्घ और पैंतालीस लाख योजन विस्तीर्ण क्षेत्र पाया जाता है। और इतना मात्र ही क्षेत्र है ' ऐसा नियम भी नहीं है, क्योंकि, अन्य भी तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग पाया जाता है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । तिर्यंच और मनुष्योंमेंसे देवोंमें उत्पन्न हुए सम्यग्दृष्टि जीवोंके द्वारा छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट है ।
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