Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४५०] छवखंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ७, २३५. सुगम, बट्टमाणप्पणादो। अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ २३५ ॥
तेजाहारपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो संखेज्जदिभागों फोसिदो । तिरिक्ख-मणुस्सेहि वेयण-कसाय-वेउब्धिय-मारणंतियसमुग्घादेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासदत्थो । देवेहि पुण वेयण-कसाय-वेउब्बिय-मारणंतियसमुग्घादेदि अडचोद्दसभागा देसूणा फोसिदा ।।
असंखेज्जा वा भागा वा ॥ २३६ ॥
एदं पदरगदकेवलिखेत्तं पडुच्च भणिदं, तत्थ वादवलयं मोत्तूण सेसासेसलोगगदजीवपदेसाणमुवलंभादो। दंडगदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो फोसिदो। एसो पढमवासदेण सूइदत्थो । कवाडगदेहि तिण्हं लोगाणम
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। ___ अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ २३५॥ .. तैजस और आहारक पदोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है। तिर्यंच व मनुष्य क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे तीन लोकोका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे अ ख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। परन्तु देव क्षायिकसम्यग्दृष्टियों द्वारा वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं।
अथवा, असंख्यात बहुभाग स्पृष्ट हैं ।। २३६ ॥
यह सूत्र प्रतरसमुद्घातगत केवलीके क्षेत्रकी अपेक्षा कहा गया है, क्योंकि,प्रतरसमुद्घातमें वातवलयको छोड़कर शेष समस्त लोकमें व्याप्त जीवप्रदेश पाये जाते हैं। दण्डसमुद्घातगत केवलियोंके द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह प्रथम वा शब्दसे सूचित अर्थ है । कपाटसमुद्घातगत
१ प्रतिषु ' असंखेज्जदिमागो' इति पाठः।
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