Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, १९९.] फोसणाणुगमे लेस्सामग्गणा
[४३९ अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ १९६ ॥
सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिमागो, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासद्दत्थो । विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोहसभागा देसूणा फोसिदा, तेउलेस्सियदेवाणं विहरमाणाणमेदस्सुवलंभादो।
समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १९७ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १९८ ॥ सुगम, वट्टमाणप्पणादो। अट्ठचोदसभागा वा देसूणा ॥ १९९ ॥
वेयण-कसाय-वेउब्बियपरिणदेहि अट्ठचोद्दसभागा फोसिदा, विहरंताणं देवाणमेदेसिं तिहं पदाणं सव्वत्थुवलंभादो। मारणंतिएण णवचोदसभागा फोसिदा, मेरुमूलादो
अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ।। १९६ ॥
स्वस्थानकी अपेक्षा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, विहार करते हुए तेजोलेश्यावाले देवोंके इतना स्पर्शन पाया जाता है।
___ समुद्घातकी अपेक्षा तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥१९७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उक्त जीवों द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १९८॥
यह सूत्र सगम है, क्योंकि, वर्तमान कालकी विवक्षा है। अथवा, अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं
वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदोंसे परिणत तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, विहार करते हुए देवोंके ये तीनों पद सर्वत्र पाये जाते हैं। मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा नौ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि,
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