Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४३२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ७, १७१. भावादो । सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा पुण मणपज्जवणाणितुल्ला ण होंति, सुहुमसांपराइयसंजदेसु वेउवियपदाभावादो । सेसं सुगमं ।
संजदासंजदा सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १७१ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७२ ॥
एदस्सत्थो- वट्टमाणे खेत्तभंगो। अदीदेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो फोसिदो । होदु णाम विहारवदिसत्थाणस्सेदं, सव्वदीव-समुद्देसु वइरियदेवसंबंधेण तीदे काले संजदासंजदाणं संभवादो । ण सत्थाणस्स, सव्वदीव-समुद्देसु सत्थाणत्थसंजदासंजदाणमभावादो ? ण एस दोसो, जदि वि सम्वत्थ णस्थि तो वि सयंपहपव्वयस्स परभाए तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे सत्थाणत्थियसंजदासंजदाणमुवलंभादो।
सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत जीव मनःपर्ययज्ञानियोंके तुल्य नहीं होते, क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिकसंयतों में वैक्रियिक पदका अभाव है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
संयतासंयत जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १७१ ॥ यह सूत्र सुगम है।
संयतासंयत जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातयां भाग स्पर्श किया है ॥ १७२ ॥
इसका अर्थ-वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । अतीत कालमें तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है।
शंका-विहारवत्स्वस्थान पदकी अपेक्षा उपर्युक्त स्पर्शनका प्रमाण भले ही ठीक हो, क्योंकि. वैरी देवोंके सम्बन्धसे अतीत कालमें सर्व द्वीप-समुद्रों में संयतासंयत जीवोंकी सम्भावना है । किन्तु स्वस्थानपदकी अपेक्षा उक्त स्पर्शन नहीं बनता, क्योंकि, स्वस्थानमें स्थित संयतासंयत जीवोंका सर्व द्वीप-समुद्रोंमें अभाव है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यद्यपि सर्वत्र संयतासंयत जीव नहीं हैं, तथापि तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण स्वयंप्रभ पवर्तके पर भागमें स्वस्थानस्थित संयतासंयत पाये जाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org