Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४१२ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ७, १०२. भागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइजादो असंखेजगुणो फोसिदो। एसो वासदत्थो। विहारवदिसत्थाणेण अट्ठचोदसभागा देसूणा फोसिदा । कुदो १ अट्ठरज्जुबाहल्ललोगणालीए मण-वचिजोगीणं विहारुवलंभादो।।
समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १०२ ॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो॥ १०३ ॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायव्या, वट्टमाणप्पणादो। अट्ठचोदसभागा देसूणा सबलोगो वा ॥ १०४ ॥ .
आहार-तेजइयपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो । एसो वासदत्थो । वेयण-कसाय-उबिएहि अट्टचोदसभागा देसूणा फोसिदा, अट्ठरज्जुआयदलोगणालीए सव्वत्थ तीदे काले वेयण-कसाय-विउवणाणमुवलंभादो । मारणंतिएण सव्वलोगो ।
द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, मनोयोगी और वचनयोगी जीवोंका विहार आठ राजु बाहल्ययुक्त लोकनालीमें पाया जाता है।
उपर्युक्त जीवों द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥१२॥ यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त जीवों द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १०३ ॥
यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी प्रधानता है ।
अथवा, उन्हीं जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग या सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ १०४॥
आहारकसमुद्घात और तेजससमुद्घात पदोंकी अपेक्षा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्रका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसजुद्घात पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, आठ राजु आयत लोकनाली में सर्वत्र अतीत कालकी अपेक्षा वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घात पाये जाते हैं। मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ।
१ प्रतिषु — वट्टमाणप्पमाणादो' इति पाठः ।
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