Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२.] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ७, १४१. लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १४१ ॥ सुगमं । समुग्घादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ १४२ ॥ एदं पि सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १४३ ॥
दंड-कवाड-मारणंतियसमुग्घादगदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो अदीद-वट्टमाणेण फोसिदो। णवरि कवाडगदेहि तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो संखेज्जगुणो वा फोसिदो ।
असंखेज्जा वा भागा ॥ १४४ ॥ एदं पदरगदाणं फोसणं, वादवलएसु जीवपदेसाणं पवेसाभावादो । सव्वलोगो वा ॥ १४५॥
अपगतवेदी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १४१॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंने समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ।। १४२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त जीवोंने समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है
॥ १४३॥
दण्ड, कपाट व मारणान्तिक समुद्घातोंको प्राप्त हुए अपगतवेदियों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पृष्ट है । विशेष इतना है कि कपाटसमुद्घातगत अपगतवेदियों द्वारा तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग अथवा संख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है।
अथवा,उक्त जीवों द्वारा समुद्घातसे लोकका असंख्यात बहुभाग स्पृष्ट है॥१४४॥
यह प्रतरसमुद्घातगत अपगतवेदियोंका स्पर्शनक्षेत्र है, क्योंकि, यहां वातवलयोंमें जीवप्रदेशोंके प्रवेशका अभाव है।
अथवा, सर्व लोक स्पृष्ट हैं ॥ १४५॥
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