Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, १४०. ]
फोसणागमे सवेदाणं फोसणं
[ ४१३
णवुंसयवेदा सत्थाण-समुग्धाद- उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
॥ १३८ ॥
मं
सव्वलोगो ॥ १३९ ॥
एदस्स अत्थो — सत्थाण - वेयण- कसाय मारणंतिय उववादेहि अदीद- वट्टमाणेण सव्वलोगो फोसिदो । विहारवदि सत्थाण-वेउब्वियसमुग्धादेहि वट्टमाणे खेत्तं । अदीदे तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो | णवरि वेउब्वियपदेण तिन्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो, णर- तिरिथलोगे हितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कुदो ? वाउक्काइयाणं विउच्यमाणाणं पंचचेाइसभागमे तफोसणस्सुवलंभादो | तेजाहारसमुग्धादा णत्थि ।
अवगदवेदा सत्थाहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १४० ॥
सुगमं ।
नपुंसकवेदी जीवोंने स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है १ ।। १३८ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
नपुंसकवेदी जीवोंने उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श किया है ।। १३९ ।।
इस सूत्र का अर्थ - स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे अतीत व वर्तमान कालकी अपेक्षा नपुंसकवेदियोंने सर्व लोकका स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणा के समान है । अतीत कालकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । विशेषता इतनी है कि वैक्रियिकपदसे तीन लोकोंके संख्यातवें भाग तथा मनुष्यलोक और तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि, विक्रिया करनेवाले वायुकायिक जीवोंके पांच बटे चौदह भागमात्र स्पर्शन पाया जाता है । तैजस व आहारक समुद्घात नपुंसकवेदियोंके होते नहीं हैं।
अपगतवेदी जी स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ।। १४०. ॥ यह सूत्र सुगम है ।
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