Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, ११३.] फोसणाणुगमे कायजोगीणं फोसणं
[४१५ उववादं णत्थि ॥ ११०॥ उववादकाले ओरालियकायजोगस्त अभावादा । वेउव्वियकायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं? ॥११॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११२ ॥
एदस्स अत्थो-तिहं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइजादो असंखेजगुणो फोसिदो । कुदो ? वट्टमाणप्पणादो ।
अट्ठचोदसभागा देसूणा ॥ ११३ ॥
वेउब्बियकायजोगीहि सत्थाणेहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणेण अडचोद्दसभागा फोसिदा, अट्ठरज्जुबाहल्ललोगणालीए वेउव्वियकायजोगेण
औदारिककाययोगमें उपपाद पद नहीं होता ॥ ११ ॥ क्योंकि, उपपादकालमें औदारिककाययोगका अभाव रहता है।
वैक्रियिककाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १११॥
यह सूत्र सुगम है।
वैक्रियिककाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११२ ॥
__ इस सूत्रका अर्थ- उक्त जीवोंने स्वस्थानपदोंसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि, वर्तमानकालकी प्रधानता है।
अतीत कालकी अपेक्षा वैक्रियिककाययोगी जीव कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११३ ॥
'वैक्रियिककाययोगी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे अतीत कालकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है, क्योंकि, आठ राजु बाहल्यवाली लोकनाली में वैक्रियिककाययोगसे देवोंका
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