Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४१६ ]
देवाणं विहारुवलंभादो ।
समुग्धादेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ११४ ॥
सुमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११५ ॥
एत्थ खेत्तवण्णणा कायन्त्रा वट्टमाणप्पणादो |
अ-तेरह चोदसभागा देणा ॥ ११६ ॥
छक्खंडागमे खुदाबंधो
वेयण-कसाय-वेउच्त्रियपदेहि अट्ठचोदस भागा फोसिदा । मारणंतिएण तेरहचोदसभागा देखणा फोसिदा । कुदो ? मेरुमूलादो उवरि सत्त हेट्ठा छरज्जुआयाम लोगणालिमावूरिय उत्रियकायजोगेण तीदे कयमारणंतिय जीवाणमुवलं भादो ।
उववादं णत्थि ॥ ११७ ॥
तत्थ वेउच्चियकायजोगाभावादो ।
विहार पाया जाता है ।
॥ ११५ ॥
उक्त जीव समुद्घातकी / अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ११४ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
उक्त जीव समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं
[ २, ७, ११४.
यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालकी प्रधानता है ।
उक्त जीव अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह और तेरह बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११६ ॥
अतीत कालकी अपेक्षा वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे उक्त जीवोंने आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है । मारणान्तिकसमुद्घातसे कुछ कम तेरह बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है, क्योंकि, मेरुमूलसे ऊपर सात और नीचे छह राजु आयामवाली लोकनालीको पूर्णकर वैक्रियिककाययोगके साथ अतीत कालमें मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त जीव पाये जाते हैं ।
Jain Education International
वैक्रियिककाय योगी जीवोंमें उपपाद पद नहीं होता ॥ ११७ ॥ क्योंकि, उपपाद पदमें वैक्रियिककाययोगका अभाव है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org