Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४१८]
छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ७, १२१.
एत्थ परिहारो वच्चदे । तं जहा- - होदु णाम तेसिं संभवो, किंतु तत्थ सत्थाणखेत्तादो अहियं खेत्तं ण लब्भदि ति तेसि पडिसेहो कदो । किमिदि ण लब्भदे ? जीवपदेसाणं तत्थ सरीरतिगुणविष्फुज्जणाभावादो ।
आहारकायजोगी सत्थाण- समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
॥ १२१ ॥
सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १२२ ॥
एत्थ वट्टमाणस्स खेत्तभंगो | अदीदेण सत्याणसत्याण-विहारवदिसत्थाण- वेयणकसायपदेहि चदुष्णं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो । मारणंतिएण चदुष्णं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो ।
समाधान – उक्त शंकाका परिहार कहते हैं । वह इस प्रकार है- नारकियोंके अपर्याप्तकाल में वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंकी सम्भावना रही आवे, किन्तु उनमें स्वस्थानक्षेत्र से अधिक क्षेत्र नहीं पाया जाता, इसी कारण उनका प्रतिषेध किया है ।
शंका - स्वस्थानक्षेत्र से अधिक क्षेत्र वहां क्यों नहीं पाया जाता ?
समाधान — क्योंकि, उनमें जीवप्रदेशों के शरीरसे तिगुणे विसर्पणका अभाव है । आहारककाययोगी जीव स्वस्थान और समुद्घात पदों से कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२१ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
आहारककाय योगी जीव उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं १ ॥ १२२ ॥
यहां वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणा के समान है । अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात पदोंसे आहारककाययोगी जीवोंने चार लोकोंके असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भागका स्पर्श किया है । मारणान्तिकसमुद्घातसे चार लोकोंके असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है।
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