Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, ९२.] फोसणाणुगमे पुढविकाइयादीणं फोसणं लोगाणं संखेज्जदिभागो, णर-तिरियलोरोहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । मारणंतियउक्वादेहि सबलोगो वट्टमाणे किण्ण पुसिज्जदि ? ण, पंचरज्जुबाहल्लरज्जुपदरं मोत्तण अण्णत्थ मारणंतिय-उववादे करेमाणजीवाणं सुट्ठ त्थोवत्तुवलंभादो । वेउब्धियपदेण खेत्तभंगो।
सव्वलोगो वा ॥ ९१ ॥
वेयण-कसाय-चेउब्धिएहि तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो, णर-तिरियलोरोहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो वासदत्थो । मारणंतिय-उववादेहि सबलोगो फोसिदो, तीदकालप्पणादो।
वणप्फदिकाइया णिगोदजीवा सुहुमवणप्फदिकाइया सुहुमणिगोदजीवा तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाण-समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ ९२ ॥
सुगमं ।
संख्यातवां भाग तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है ।
शंका-मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे वर्तमानमें सर्व लोक स्पर्श क्यों नहीं किया जाता?
समाधान-नहीं, क्योंकि पांच राजु बाहल्यरूप राजुप्रतरको छोड़कर अन्यत्र मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादको करनेवाले जीव बहुत थोड़े पाये जाते हैं। वैक्रियिक पदकी अपेक्षा क्षेत्रप्ररूपणाके समान जानना चाहिये ।
अथवा, उपर्युक्त जीवों द्वारा समुद्घात व उपपादसे सर्व लोक स्पृष्ट है ॥११॥
वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे तीन लोकोका संख्यातवां भाग तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है। मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, अतीत कालकी विवक्षा है।
वनस्पतिकायिक, निगोदजीव, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोदजीव तथा उनके ही पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ९२ ।।
यह सूत्र सुगम है।
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