Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, १७.] फोसणाणुगमे तिरिक्खाणं फोसणं
[ ३७७ संखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कुदो ? मित्तामित्तदेवाणं वसेण एदेसि सव्वदीव-समुद्देसु संचरणं पडि विरोहाभावादो । तेणेत्थ संखेज्जंगुलबाहल्लतिरियपदरमुडमेगूणवंचासखंडाणि करिय पदरागारेण ठइदे पंचिंदियतिरिक्खतिगस्स विहारादिचउक्कखेत्तं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं होदि । एसो वासदेण सूइदहो । विहारवदिसत्थाणखेत्तपरूवणाए चेव वेयण-कसाय-वेउब्वियपदाणं पि परूवणा कदा गंथलाघवकरणहूँ । ( समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १६ ॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा ॥ १७॥
एदस्स सुत्तस्स बट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो । वेयण-कसाय-बेउब्धियपदाणं पि तीदकालपरूवणा पुव्वमेव परूविदा । मारणंतिय-उववादपरिणयपंचिंदियतिरिक्खतिएहि
असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, मित्र व शत्रुरूप देवोंके वशसे इनके सर्व द्वीपसमुद्रोंमें संचार करनेका कोई विरोध नहीं है। इसीलिये यहां संख्यात अंगुल बाहल्यरूप तिर्यक् प्रतरके ऊपरसे उनचास खण्ड कर प्रतराकारसे स्थापित करनेपर उक्त तीन पंचेन्द्रिय तिर्यचोंका विहारादि चार पदसम्बन्धी क्षेत्र तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमात्र होता है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । ग्रन्थलाघवके लिये विहारवत्स्वस्थान क्षेत्रकी प्ररूपणासे वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्धात पदोंकी भी प्ररूपणा कर दी गई है।
उक्त तीन प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके द्वारा समुद्धात व उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥१६॥
यह सूत्र सुगम है। ___ उपर्युक्त तियंचोंके द्वारा उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ १७ ॥
इस सूत्रकी वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रके समान है। वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात व वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अतीतकालप्ररूपणा भी पूर्व में ही की जा चुकी है। मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे परिणत उक्त तीन पंचेन्द्रिय तिर्यचों द्वारा
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