Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, २३. ]
फासणागमे मणुस्साणं फोसणं
[ ३८१
मारणंतिएण गमवलंभादो | दंड-कवाड-लोग पूरणपरूवणा सुगमेति (ण) परूविजदे । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २२ ॥
सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा ॥ २३ ॥
लोगस्सा संखेज्जदिभागो ति णिसो वट्टमाणकालावेक्खो । एदेण जाणिज्जदे वट्टमाणातीदकालसंबंधिखेत्ताणि दो वि फोसणे परूविज्जति त्ति । अदीदे घणसव्वलोगो फोसिदो, सुहुमेहि सव्वलोगावट्ठिएहि आगंतूण मणुस्सेसु उप्पज्जमाणेहि आवूरिज्जमाणलगदंसणादो । कधं पंचेचालीसजोयणलक्खबा हल्लतिरिय पदरमेत्तागास पदेसहिदमणुस्सेहि सव्वलोगो आबूरिज्जदि ? ण, मणुस गइपा ओग्गाणुपुच्त्रि विवागजोग्गागासपदेसेहि सव्वलोग पेरतेसु मज्झे च समयाविरोहेण अवट्ठिएहि णिग्गंतूण संखेज्जासंखेज्जजोयणायामेण मणुस गइमु गएहि सव्वादीदकालम्मि सव्वलोगावरणं पडि विरोहा भावादो ।
जाता है । दण्ड, कपाट, प्रतर व लोकपूरण समुद्घातपदोकी प्ररूपणा सुगम है, इसलिये उनकी प्ररूपणा यहां नहीं की जाती है ।
उपर्युक्त मनुष्योंके द्वारा उत्पादपदकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है १ ।। २२ ।। यह सूत्र सुगम है ।
उपपाद पदकी अपेक्षा उक्त मनुष्यों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है || २३ ॥
'लोकका असंख्यातवां भाग यह निर्देश वर्तमान कालकी अपेक्षा है । इससे जाना जाता है कि वर्तमान व अतीत कालसम्बन्धी क्षेत्र दोनों ही स्पर्शनमें प्ररूपित है । अतीत कालकी अपेक्षा सर्व घनलोक स्पृष्ट है, क्योंकि, मनुष्यों में आकर उत्पन्न होनेवाले सर्व लोक में स्थित सूक्ष्म जीवों से परिपूर्ण लोक देख जाता है ।
"
शंका - पैंतालीस लाख योजन बाहल्यवाले तिर्यक्प्रतरमात्र आकाशप्रदेशों में स्थित मनुष्यों के द्वारा सर्व लोक कैसे पूर्ण किया जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि लोकके पर्यन्तभागों में व मध्य में भी समयाविरोधसे स्थित ऐसे मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके विपाकयोग्य आकाशप्रदेशोंसे निकलकर संख्यात एवं असंख्यात योजन आयामरूपसे मनुष्यगतिको प्राप्त हुए मनुष्यों द्वारा सर्व अतीत कालमें सर्व लोक के पूर्ण करनेमें कोई विरोध नहीं है ।
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