Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, ११.1 फोसणाणुगमे देवाणं फासणं
[ ३८९ चोदसभागा देसूणा । कुदो ? तिरिक्ख-मणुस्साणं तीदे काले पहापत्थडे उप्पज्जंताणं दिवड्डरज्जुबाहल्लरज्जुपदरमेत्तफोसणुवलंभादो ।
सणक्कुमार जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवा सत्थाण-समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ३९ ॥
सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो अgचोदसभागा वा देसूणा ॥४०॥
वट्टमाणकालं पडुच्च लोगस्स असंखेज्जदिभागो ति णिद्दिष्टुं । तेणेत्थ खेतपरूवणा सव्वा कायव्वा । तीदकाले सत्थागेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो फोसिदो । कुदो ? विमाणरुद्धखेत्तस्स चदुण्हं लोमाणमसंखेज्जदिभागमेतपमाणत्तादो । विहार-वेयणकसाय-वेउब्धिय-मारणंतियपदपरिणएहि अट्टचोदसभागा देसूणा फोसिदा । कुदो ? तसजीवे मोत्तणण्णत्थ एदेसिगुप्पत्तीए अभावादो।।
उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ४१ ॥
अपेक्षा कुछ कम चौदह भागोंमें डेढ़ भागप्रमाण क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, अतीत कालकी अपेक्षा प्रभा पटलमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच व मनुष्योंका डेढ़ राजु बाहल्यसे युक्त राजुप्रतरमात्र स्पर्शन पाया जाता है ।
सनत्कुमारसे लेकर शतार-सहस्रार कल्प तकके देव स्वस्थान और समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ३९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त देव स्वस्थान व समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ४० ॥
वर्तमान कालकी अपेक्षा 'लोकका असंख्यातवां भाग' ऐसा निर्देश किया है। इस कारण यहां सब क्षेत्रारूपणा करना चाहिये । अतीत कालमें स्वस्थानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, विमानरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण चार लोकोंके असंख्यातवें भागमात्र है । विहार, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्धात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे परिणत उक्त देवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौवह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, त्रस जीवोंको छोड़ अन्यत्र उनकी उत्पत्तिका अभाव है।
उक्त देवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ४१ ॥
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