Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ७, ५२. ]
फोसणाणुगमे एइंदियाणं फोसणं
[ ३९३
एत्थ वट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो। तीदेण सत्थाण- वेयण-कसाय-मारणंतियउवादेहि सव्वलोगो फोसिदो । वेउब्वियपदेण लोगस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो । वरि हुमाणं वेउब्वियं णत्थि ।
बादरेइंदिया पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ५१ ॥
गमं ।
लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ ५२ ॥
कुदो ? पंचरज्जुबाहलं रज्जुपदरं वाउक्काइयजीवारिदं बादरएइंदियजीवावृरिदसत्तपुढवीओ च, तासिं पुढवीणं हेट्ठा ट्ठिदवीसवीसजोयणसहस्सवाहल्लं तिष्णि तिण्णि वादवलयखेत्ताणि लोगंतट्ठिदवाउक्काइयखेत्तं च एग कदे तिन्हं लोगाणं संखेजदिभागो र तिरियलोगेर्हितो असंखेज्जगुणो खेत्तविसेसो उप्पज्जदि । तेण लोगस्स संखेज्जदिभागो अदीद-वट्टमाणे कालेसु लब्भदि ।
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है । वैक्रियिकसमुद्घात पदसे लोकका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है। विशेष इतना है कि सूक्ष्म जीवोंके वैक्रियिकसमुद्घात नहीं होता ।
बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ५१ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ५२ ॥
क्योंकि, वायुकायिक जीवोंसे परिपूर्ण पांच राजु बाहल्यरूप राजुप्रतर, बादर एकेन्द्रिय जीवोंसे परिपूर्ण सात पृथिवियों, उन पृथिवियोंके नीचे स्थित बीस बीस सहस्र योजन बाहल्यरूप तीन तीन वातवलयक्षेत्रों, तथा लोकान्तमें स्थित वायुकायिकक्षेत्रको एकत्रित करनेपर तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणा क्षेत्रविशेष उत्पन्न होता है । इसलिये अतीत व वर्तमान कालों में लोकका संख्यातवां भाग प्राप्त होता है ।
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