Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३९२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ७, ४७. णवगेवज जाव सवट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा सत्थाण-समुग्घादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥४७॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो॥४८॥
सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-वेउब्धिय-मारणतिय -उववादेहि अदीद-वट्टमाणेण चदुण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। णवरि सव्वट्ठसिद्धिम्हि मारणंतिय-उववादविरहिदसेसपदेहि माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो त्ति वत्तव्यं ।
इंदियाणुवादेण एइंदिया सुहुमेहंदिया पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ४९ ॥
सुगमं । सबलोगो ॥ ५० ॥
नौ अवेयकोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धिविमान तकके देव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥४७॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त देव उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ४८ ॥
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात, वैक्रियिकसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा अतीत व वर्तमान कालसे चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । विशेष इतना है कि सर्वार्थसिद्धि में मारणान्तिक व उपपाद पदोंको छोड़ शेष पदोंकी अपेक्षा मानुषक्षेत्रका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है, ऐसा कहना चाहिये।
इन्द्रियमार्गणानुसार एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय पर्याप्त, एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ।। ४९ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते है ॥ ५० ॥
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