Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३८८ ]
छक्खडागमे खुदाबंधो
[ २, ७, ३७.
लक्खबाहल्लं रज्जुपदरं ठविय पुत्रं व खंडिय पदरागारेण ठइदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेतमुववादखेतं होदि ।
सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवा सत्थाण-समुग्धादं देवगदिभंगो
॥ ३७ ॥
एत्थ वद्रुमाणपरूवणाए खेत्तभंगो | अदीदकालमस्सिदूग परूवणाए वि दव्धट्ठियणयावलंबणेण देवगदिभंगो होदि, ण पज्जवट्टियणयावलंबणम्मि । कुदो ! सत्थाणेण सोधम्मीसाणदेवेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, विहार-वेयण- कसाय- वे उन्त्रिय मारणंतिय परिणएहि अड्डणवचोहसभागा देणा फोसिदा ति णिद्दित्तादो |
उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो दिवडचोहसभागा वा देसूणा ॥ ३८ ॥
वट्टमाणकालं पच्च लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अदीदकालं पडुच्च दिव
प्रतरको स्थापित कर व पूर्वके समान ही खंण्ड करके प्रतराकार से स्थापित करनेपर तिर्यग्लोकका संख्यातवां भागमात्र उपपादक्षेत्र होता है ।
सौधर्म-ईशान कल्पवासी देवोंके स्पर्शनका निरूपण स्वस्थान और समुद्घातकी अपेक्षा देवगतिके समान है ॥ ३७ ॥
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणा के समान है । अतीत कालका आश्रय करके स्पर्शनकी प्ररूपणा भी द्रव्यार्थिक नयके अवलंबन से देवगति के समान है, किन्तु पर्यायार्थिक नयसे वह देवगतिके समान नहीं है । इसका कारण यह है कि स्वस्थान से सौधर्म - ईशान कल्पवासी देवों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, तथा विहार, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे परिणत उक्त देवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह और नौ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है ।
उपपाद पदकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ! उपपाद पदकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा चौदह भागों में कुछ कम डेढ़ भागप्रमाण क्षेत्र स्पृष्ट है ॥ ३८ ॥
बर्तमान कालकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग और अतीत कालकी
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