Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुदाबंध
[ २, ७, २०
एदस्सत्थो बुच्चदे— सत्थाणसत्थाण- विहारव दिसत्थाणेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो फोसिदो, तीदे काले पुञ्चवरिय देवसंबंधेण वि माणुसुत्तरसेलादो परदो मसाणं गमनाभावादो | माणुसखेत्तस्स पुण संखेज्जदिभागो फोसिदो, उवरिगमणाभावादो | अधवा विहारेण माणुसलोगो देसूणो फोसिदो त्ति केई भनि, पुण्ववइरियदेवसंबंघेण उड्ड देसूणजोयणलक्खुपायणसंभवादो |
समुग्धादेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ २० ॥
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सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा ॥ २१ ॥
वेदण-कसाय-उच्वियपदाणं विहारवदिसत्थाणभंगो | तेजाहारपदाणं सत्थाणसत्थाणभंगो | मारणंतिएण सव्वलोगो फोसिदो, तीदे काले सव्वहि लोग खेत्ते माणुसाणं
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं— स्वस्थानस्वस्थान व विहारवत्स्वस्थान से चार लोकोंका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, अतीत काल में पूर्वके वैरी देवोंके सम्बन्ध से भी मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्योंका गमन नहीं है । परन्तु मानुषक्षेत्रका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, मानुषक्षेत्र के ऊपर उक्त मनुष्योंका गमन नहीं है । अथवा, विहारकी अपेक्षा कुछ कम मानुषलोक स्पृष्ट है, ऐसा कोई आचार्य कहते हैं, क्योंकि, पूर्ववैरी देवोंके सम्बन्धसे ऊपर कुछ कम एक लाख योजनके उत्पादनकी सम्भावना है ।
उपर्युक्त मनुष्यों के द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ २०॥ यह सूत्र सुगम है ।
उपर्युक्त मनुष्यों के द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग, असंख्यात बहुभाग, अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ २१ ॥
वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण विहारवत्स्वस्थानके समान है । तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा स्पर्शनप्ररूपणा स्वस्थानस्वस्थान पदके समान है । मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा उक्त मनुष्योंके द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है, क्योंकि, अतीत कालकी अपेक्षा सब लोकक्षेत्र में मारणान्तिकसमुद्घातसे मनुष्यों का गमन पाया
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