Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३६८ ]
तस्स व अवगमादो ।
छक्खंडागमे खुदाबंधो
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २ ॥
होदु णाम व माणकाले' णेरइएहि सत्थाणेहि छुत्तं खेत्तं चदुन्हं लोगाणमसंखेअदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणं । किंतु णादीदकाले एदं होदि, तत्थ तिन्हं लोगाणं संखेज्जदिभागमेत्तछुत खेत्तुवलंभादो । तं कथं ? णेरइया लोगणालिं समचउरसरज्जुमेतायामविक्खंभ - छरज्जुआयदं सव्वमदीदकाले सङ्काणट्टिया फुसंति त्ति ? ण, संखेज्जजोयणबाहल्लसत पुढवीओ मोत्तूण तेसिमदीदकाले अण्णत्थ अवट्ठाणाभावादो । जदि वि एवं तो व तीकाले तिरियलोगादो संखेजगुणेण होदव्वं, संखेज्जसूचिअंगुलबाइलतिरियपदरमेत्तखेत्तुवलंभादो ? ण, पुढवीणमसंखेज्जदिभागे चेव णेरइया होंतिि गुरुवदेसादो, सत्थाणेहि तिरिय लोगस्स असंखेज्जदिभागों चैव पोसिदो त्ति वक्खाणादो वा ।
होनेसे उसका भी ज्ञान हो जाता है ।
नारकियों द्वारा स्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥२॥
शंका - वर्तमान कालमै नारकियोंसे स्पृष्ट क्षेत्र चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण व माणुस क्षेत्र से असंख्यातगुणा भले ही हो, किन्तु यह अतीतकालमें नहीं बनता, क्योंकि, अतीतकाल में तीन लोकोंके संख्यातवें भागमात्र स्पृष्ट क्षेत्र पाया जाता है ?
प्रतिशंका - वह कैसे ?
[ २, ७, २.
प्रतिशंकाका समाधान - नारकी जीव स्वस्थानमें स्थित होते हुए अतीतकाल में समचतुष्कोण एक राजुप्रमाण आयाम व विष्कम्भ से युक्त तथा छह राजु ऊंची सब लोकनालीको छूते हैं ।
शंकाका समाधान - नहीं, क्योंकि, संख्यात योजन बाहल्यरूप सात पृथिवियोंको छोड़कर उन नारकियोंका अतीतकाल में अन्यत्र अवस्थान नहीं है ।
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शंका- यद्यपि ऐसा है तो भी अतीतकाल में तिर्यग्लोकले संख्यातगुणा क्षेत्र होना चाहिये, क्योंकि, संख्यात सूच्यंगुल बाहल्यरूप व तिर्यक् प्रतरमात्र क्षेत्र पाया जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, पृथिवियोंके असंख्यातवें भाग में ही नारकी जीव होते हैं, ऐसा गुरूपदेश है; अथवा स्वस्थानों की अपेक्षा तिर्यग्लोकका असंख्यातवां भाग ही स्पृष्ट है, ऐसा. व्याख्यान पाया जाता है ।
१ प्रतिषु' कालो ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' मागे ' इति पाठ: ।
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