Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [ २, ६, १२३. एदस्सत्थो- सत्थाणसत्थाण-वेयण-कसाय-मारणंतिय-उववादेहि सव्वलोए, आणंतियादो । विहारवदिसत्थाण-वेउवियपदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे ।
अणाहारा केवडिखेत्ते ? ॥ १२३ ॥ सुगमं । सव्वलोए ॥ १२४ ॥
कुदो ? आणतियादो। एत्थ भवस्त पढमसमए अवट्ठिदाणं उववाद होदि, बिदियादिदोसु समएसु द्विदाणं सत्थाणं होदि । एवं दोसु पदेसु लब्भमाणेसु किमहें ताणि दो पदाणि ण वुत्ताणि ? ण, तत्थ खेत्तभेदाणुवलंभादो ।
एवं खेत्ताणुगमो त्ति समत्तमणिओगद्दारं ।
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्धात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे आहारक जीव सर्व लोकमें रहते हैं, क्योंकि, वे अनन्त हैं। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं।
अनाहारक जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ १२३ ॥ यह सूत्र सुगम है। अनाहारक जीव सर्व लोकमें रहते हैं ॥ १२४ ।। क्योंकि, वे अनन्त हैं!
शंका-यहां भवके प्रथम समयमें अवस्थित जीवोंके उपपाद होता है और द्वितीयादिक दो समयोंमें स्थित जीवोंके स्वस्थान पद होता है। इस प्रकार दो पदोंकी प्राप्ति होनेपर किसलिये उन दो पदोंको यहां नहीं कहा? समाधान नहीं, क्योंकि, उनमें क्षेत्रभेद नहीं पाया जाता ।
इस प्रकार क्षेत्रानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
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