Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९४ ]
छडागमे खुदाबंधो
[ २, ५, १५४.
एदेण संखेज्जाणंताणं पडिसेहो कदो । कुदो ? एदेसिं विरुद्धसंखाणिद्देसादो । अणिच्छिद असंखेज्जपडिसेहमुत्तरमुत्तं भणदि -
एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्ते ॥ १५४ ॥
एत्थ अवहार कालो असंखेज्जावलियमेत्तो । एदेण परिदोवमे भागे हिदे सुक्कलेसरासी होदि । सेसं सुगमं ।
भवियाणुवादेण भवसिद्धिया दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १५५ ॥
सुगमं ।
अणंता ॥ १५६ ॥
एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो, सव्वस्स वयणस्स सपबिक्खुक्खणणेण अपणो अत्थस्स पदुपायणादो । अणिच्छिदाणतेसु भवियरासिस्स पडिसेहमुत्तरसुतं भणदि -
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अनंताणंताहि ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण
।। १५७ ॥
इस सूत्र के द्वारा संख्यात और अनन्तका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, यहां इनके विरुद्ध संख्याका निर्देश है । अनिच्छित असंख्यात के प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
शुक्लेश्यावाले जीवों द्वारा अन्तर्मुहूर्त से पल्योपम अपहृत होता है || १५४ ॥ यहां अवहारकाल असंख्यात आवलीमात्र है । इसका पल्येोपममें भाग देने पर शुक्लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है । शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
भव्य मार्गणा के अनुसार भव्यसिद्धिक द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। १५५ ॥ है ।
यह सूत्र सुगम
भव्य सिद्धिक जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ।। १५६ ।।
इस सूत्र के द्वारा संख्यात और असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, सभी बचन अपने प्रतिपक्षका निराकरण कर स्वकीय अभीष्ट अर्थके प्रतिपादक होते हैं । अनिच्छित अनन्तोंमें भव्यराशिके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
मव्यसिद्धिक कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी- उत्सर्पिणियोंसे अपहृत नहीं होते ।। १५७ ॥
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