Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ६, ३५.] खेत्ताणुगमे पुढविकाइयादिखेत्तपरूवणं
[३३१ जगपदरपमाणेण कस्सामो
तत्थ पढमपुढवी एगरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुदीहा वीससहस्सूणबेजोयणलक्खबाहल्ला; एसा अप्पणो बाहल्लस्स सत्तमभागवाहल्लं जगपदरं होदि ) विदियपुढवी सत्तमभागूणबेरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा बत्तीसजोयणसहस्सवाहल्ला सोलससहस्ससमहियचउण्हं लक्खाणमेगूणवंचासभागबाहल्लं जगपदरं होदि । तदियपुढवी बेसत्तभागूणतिण्णिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा अट्ठावीसजोयणसहस्सवाहल्ला; इमं जगपदरपमाणेण कीरमाणे बत्तीससहस्साहियपंचलक्खजोयणाणमेगूणवंचासभागबाहल्लं जगपदरं होदि । चउत्थपुढवी तिण्णिसत्तभागूणचत्तारिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा चउवीसजोयणसहस्सबाहल्ला; इमं जगपदरपमाणेण कीरमाणे छज्जोयणलक्खाणमेगुणवंचासभागबाहल्लं जगपदरं होदि। पंचमपुढवी चत्तारिसत्तभागूणपंचरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा वीसजोयणसहस्सबाहल्ला; इमं जगपदरपमाणेण कीरमाणे वीससहस्साहियछण्णं लक्खाणं एगुणवंचासभागवाहल्लं जगपदरं होदि । छट्ठपुढवी पंचसत्तभागूणछरज्जुविक्खंमा सत्तरज्जुआयदा सोलसजोयणसहस्सबाहल्ला बाणउदिसहस्साहियपंचण्हं लक्खाणमेगूणवंचास
रुद्ध क्षेत्रके ज्ञापनार्थ आठ पृथिवियोंको जगप्रतर प्रमाणसे करते हैं
उनमें प्रथम पृथिवी एक राजु विस्तृत, सात राजु दीर्घ और बीस सहन कम दो लाख योजनप्रमाण बाहत्यसे सहित है। यह घनफलकी अपेक्षा अपने बाहल्यके सातवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण है। द्वितीय पृथिवी एक बटे सात भाग कम दो राजु विस्तृत, सात राजु आयत और वत्तीस सहस्र योजनप्रमाण बाहल्यसे संयुक्त है। यह घनफलकी अपेक्षा चार लाख सोलह सहस्र योजनोंके उनचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण है । तृतीय पृथिवी दो बटे सात भाग कम तीन राजु विस्तृत, सात राजु आयत और अट्राईस सहन योजनप्रमाण बाहल्यसे युक्त है। इसे जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर पांच लाख बत्तीस सहस्र योजनोंके उनंचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण होती है। चतुर्थ पृथिवी तीन बटे सात भाग कम चार राजु विस्तृत, सात राजु आयत
और चौबीस सहस्र योजनप्रमाण बाहत्यसे संयुक्त है । इसे जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर वह छह लाख योजनोंके उनचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण होती है। पंचम पृथिवी चार बटे सात भाग कम पांच राजु विस्तृत, सात राजु आयत और बीस सहन योजनप्रमाण बाहल्यसे संयुक्त है। इसे जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर छह लाख बीस सहन योजनोंके उनचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण होती है। छठी पृथिवी पांच बटे सात भाग कम छह राजु विस्तृत, सात राजु आयत और सोलह सहस्र योजनप्रमाण बाहल्यसे संयुक्त है। यह घनफलकी अपेक्षा पांच लाख वानवै सहस्र योजनोंके उनचासवें भाग
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