Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, ६, ५१.1 खेत्ताणुगमे तसकाइयखेत्तपरूवणं
। १३९ गर-तिरियलोगादो संखेज्जगुणे । कुदो ? पुढवीओ चेवस्सिदण बादराणमवट्ठाणादो । माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे ।
समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ४९ ॥ सुगमं । सव्वलोए ॥५०॥
एदस्सत्थो वुच्चदे- वेयण-कसायसमुग्धादेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, तिरियलोगादो संखेज्जगुणे, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे । कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । मारणंतिय-उववादेहि सव्वलोगे । कुदो ? आणतियादो।
तसकाइय-तसकाइयपज्जत्त-अपज्जत्ता पंचिंदिय-पज्जत्त-अपजत्ताणं भंगो ॥ ५१ ॥
जेण दोण्हं सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-वेउव्यियपदेहि तिण्हं लोगाणं असंखेज्जदिभागत्तणेग, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तणेण, माणुसखेत्तादो
स्वस्थानसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, पृथिवियोंका आश्रय करके ही बादर जीवोंका अवस्थान है । मानुषक्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं।
उक्त जीव समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमे रहते हैं ? ॥ ४९ ॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीव समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ५० ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते है- वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घातसे तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे, और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। कारण पूर्वके ही समान कहना चाहिये । मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे सर्व लोकमें रहते हैं, क्योंकि, वे अनन्त हैं।
त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंके क्षेत्रका निरूपण पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है ॥५१॥
क्योंकि, दोनों (अस व पंचेन्द्रिय) जीवोंके स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भागत्वसे, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागत्वसे व मानुषक्षेत्रकी अपेक्षा
१ प्रतिषु । पदाणं 'इति पारः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org