Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२, ६, ६१.] खेत्ताणुगमे जोगमग्गणा
[ ३१३ खेत्तस्स संखेज्जदिभागे । कवाड-पदर-लोगवूरणाहारपदाणि णत्थि, ओरालियकायजोगेण तेसि विरोहादो।
उववादं णत्थि ॥ ५८ ॥ ओरालियकायजोगेण सह एदस्स विरोहादो । वेउब्वियकायजोगी सत्थाणेण समुग्घादेण केवडिखेत्ते? ॥५९॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥६०॥
एदस्सत्थो बुच्चदे- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-उब्धियपदेहि वेउब्वियकायजोगिणो तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । कुदो ? पहाणीकयजोइसियरासित्तादो। मारणंतियसमुग्घादेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे । एत्थ ओवट्टणं जाणिय कायव्वं ।
उववादो णत्थि ॥ ६१ ॥
रहते हैं । कपाटसमुद्घात, प्रतरसमुद्घात, लोकपूरणसमुद्घात और आहारकसमुद्घात पद नहीं है, क्योंकि, औदारिककाययोगके साथ उनका विरोध है।
औदारिककायजोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता ॥ ५८ ॥ क्योंकि, औदारिककाययोगके साथ इसका विरोध है। वैक्रियिककाययोगी स्वस्थान और समुद्घातसे कितने क्षेत्र में रहते हैं १ ॥५९॥ यह सूत्र सुगम है।
वैक्रियिककायजोगी जीव स्वस्थान व समुद्घातसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६० ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे वैक्रियिककाययोगी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमे, और अढाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, यहां ज्योतिषीराशिकी प्रधानता है। मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोककी अपेक्षा असंख्यातंगुणे क्षेत्र में रहते हैं । यहां अपवर्तन जानकर करना चाहिये।
वैक्रियिककाययोगियोंके उपपाद पद नहीं होता ॥६१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org