Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३३०] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ६, ३४. सव्वलोगे । कुदो ? असंखेज्जलोगपरिमाणत्तादो । तेउकाइएसु वेउब्वियसमुग्घादगदा पंचण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अंगुलस्स असंखेजदिभागमेत्तोगाहणादो। वाउक्काइएसु वेउब्वियसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे । माणुसखेत्तं ण णव्वदे ।
बादरपुढविकाइय-वादरआउकाइय-वादरतेउकाइय-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता सत्थाणेण केवडिखेत्ते ? ॥३४॥
सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे॥ ३५ ॥
एदं देसामासियसुत्तं, तेणेदेण आमासियत्थेण अणामासियत्थो वुच्चदे । तं जहा- बादरपुढविआदिअट्ठवग्गा सत्थाणगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगादो संखेज्जगुणे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छति । कुदो ? सापज्जत्ताणं पुढविकाइयाणं पुढवीओ चेवस्सिदूण अवट्ठाणादो । एदेहि रुद्धखेत्तजाणावणट्ठमट्टपुढवीओ
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वे असंख्यात लोकप्रमाण हैं। तेजस्कायिकोंमें वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त हुए जीव पांचों लोकोंके असंख्यात- भागमें रहते हैं, क्योंकि, वे अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण अवगाहनावाले हैं। वायुकायिकोंमें वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त हुए जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। मानुषक्षेत्रकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं, यह ज्ञात नहीं है।
__ बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर तेजस्कायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर व उनके अपर्याप्त जीव स्वस्थानसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥३४॥
यह सूत्र सुगम है।
उपर्युक्त बादर पृथिवीकायिकादिक जीव स्वस्थानसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ३५ ॥
यह देशामर्शक सूत्र है, इस कारण इसके द्वारा आमृष्ट अर्थात् गृहीत अर्थसे अनामृष्ट अर्थात् अगृहीत अर्थको कहते हैं। वह इस प्रकार है- बादर पृथिवी आदि आठ जीवराशियां स्वस्थानको प्राप्त होकर तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, अपर्याप्तोंसे सहित पृथिवीकायिक जीवोंका अवस्थान पृथिवियोंका ही आश्रय करके है। इन जीवोंसे
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