Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंड | गमे खुदाबंधो
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ १६ ॥
सत्थाण
देसामासियसुत्तमिदं, तेणेदेण सूचिदत्यस्स परूवणं कीरदे । तं जहासत्थाण-विहारवदिसत्थाण- वेयण-कसाय वेउच्चियसमुग्वादगदा देवा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणे अच्छंति । कुदो ? पहाणीकदजोइसियक्खेत्तादो । विहारवदिसत्थाण- वेयण- कसाय- वेउच्चियरासीओ सग-सगरासीणं सव्वत्थ संखेज्जदिभागमेत्ताओ, सत्थाणसत्याणरासी सगरासिस्स सव्वत्थ संखेज्जाभागमेत्ता त्ति क णव्वदे ? ण, गुरूवदेसादो, एदेसु पदेस दिदेवा तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे अच्छंति त्ति वक्खाणादो वा णच्वदे | मारणंतिय समुग्वादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे पर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छति । एदस्स खेत्तस्स वणविहाणं बुच्चदे । तं जहा- एत्थ वाणवेतरखेत्तं पहाणं, तत्थतणसंखेज्ज
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[ २, ६, १६.
देव उपर्युक्त पदों से लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ।। १६ ।।
यह सूत्र देशामर्शक है, इसलिये इसके द्वारा सूचित अर्थकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कपायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त देव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में, और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, यहां ज्योतिषी देवोंका क्षेत्र प्रधान है । विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कपायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त राशियां सर्वत्र अपनी अपनी राशियों के संख्यातवें भागमात्र और स्वस्थानस्वस्थानराशि सर्वत्र अपनी राशिके संख्यात बहुभागप्रमाण होती है ।
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शंका- 'विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कपायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त राशियां अपनी अपनी राशियोंके संख्यातवें भागमात्र है, तथा स्वस्थानस्वस्थानराशि सर्वत्र अपनी राशिके संख्यात बहुभागप्रमाण है' यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- -नहीं, क्योंकि, उपर्युक्त राशियोंका प्रमाण गुरुके उपदेश से जाना जाता है । अथवा 'इन पदोंमें स्थित देव तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में रहते हैं' इस व्याख्यान से जाना जाता है ।
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मारणान्तिकसमुद्वातको प्राप्त देव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । इस क्षेत्रके स्थापनाविधानको कहते हैं । वह इस प्रकार है- यहां वानव्यन्तरोंका क्षेत्र प्रधान है, क्योंकि, वहां पर
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