Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८० छक्खंडागमे खुद्दाबंधी
[२, २, १९४. प्पण्णस्स गम्भादिअहवस्साणमंतोमुहुत्तब्भहियाणं उवरि खइयं पट्टविय देसूणपुवकोडिमच्छिय तेत्तीसाउद्विदिदेवेसुप्पज्जिय पुणो पुयकोडिआउहिदिमणुस्सेसुप्पज्जिय अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे अबंधभावं गयस्स दोअंतोमुहुत्ताहियअहवस्सूणदोपुनकोडीहि साहियतेत्तीससागरोवमाणमुवलंभादो।
वेदगसम्माइट्ठी केवचिरं कालादो होति ॥ १९४ ॥ सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ १९५ ॥
मिच्छाइद्विस्स दिट्ठमग्गस्स सम्मत्तं घेत्तूण जहणमंतोमुत्तमच्छिय मिच्छत्तं गयस्स तदुवलंभादो।
उक्कस्सेण छावट्टिसागरोवमाणि ॥ १९६ ॥
बुदो ? उत्रसमसम्मत्तादो वेदगसम्मत्तं पडिज्जिय सेस जमाणाउएणूणवीससागरोवमाउढिदिएसु देवेसुववज्जिय तदो मणुस्सेसुववज्जिय पुणो मणुस्माउएणूणवावीस
आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न होकर, गर्भस आठ वर्ष व अन्तर्मुहूर्त अधिक हो जानेपर क्षायिकसम्यक्त्वको स्थापित करता है और कुछ कम पूर्वकोटि तक रहकर तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर पुनः पूर्वकोटि आयुस्थितियाले मनुष्योंमें उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूते मात्र संसारकाल के अवशेष रहनपर अबन्धकभावको प्राप्त हो जाता है, तब उसके क्षायिकसम्यक्त्वका काल दो अन्तर्मुहर्त से अधिक आठ वर्ष कम दो पूर्वकोटि सहित तेतीस सागरोपमप्रमाण पाया जाता है।
जीव वेदकसम्यग्दृष्टि कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १९४ ।। यह सूत्र सुगम है। कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव वेदकसम्यग्दृष्टि रहते हैं ॥ १९५ ॥
क्योंकि, सन्मार्ग प्राप्त करलेनेवाले मिथ्यादृष्टिके सम्यक्त्व ग्रहण करके कमसे कम अन्तर्मुहूर्त रहकर पुनः मिथ्यात्वमें चले जानेपर वेदकसम्यक्त्वका अन्तर्मुहूर्त काल प्राप्त हो जाता है।
अधिकसे अधिक छयासठ सागरोपम काल तक जीव वेदकसम्यग्दृष्टि रहते हैं ॥१९६॥
क्योंकि, एक जीव उपशमसम्यक्त्वसे वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होकर शेष भुज्यमान आयुसे कम बीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवों में उत्पन्न हुआ। फिर वहांसे मनुष्यों में उत्पन्न होकर पुनः मनुष्यायुसे कम बावीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवों में
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