Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ५, ३७.) दवपमाणाणुगमे भवणवासियदेवाणं पमाणं
२६१ काऊण विसिट्ठस्स अजहण्णाणुक्कस्सस्स परूवणा कदा । ( भवणवासियदेवा दब्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ३४ ॥) सुगमं । असंखेज्जा ॥ ३५॥
पडिवक्खपडिसेहं काऊण सपक्खपदुप्पायणादो एदेण सुत्तेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो । तं पि असंखेज परित्त जुत्त-असंखेज्जासंखेज्जभेएण तिविहं होदि । तत्थ वि अणप्पिदस्स पडिसेहट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरति कालेण ॥ ३६॥
एदेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । जहण्णअसंखेज्जासंखेनं पि पडिसिद्धं, तत्थ असंखेज्जासंखेज्जओसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । संपहि अवसेसेसु दोसु अणप्पिदपडिसेहट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
खेत्तेण असंखेज्जाओ सेडीओ ॥ ३७॥
असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध करके शेष रहे अजघन्यानुत्कृष्टकी प्ररूपणा की है।
भवनवासी देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ३४ ॥ यह सूत्र सुगम है। भवनवासी देव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ ३५ ॥
प्रतिपक्षका निषेधकर स्वपक्षका प्रतिपादन करनेसे इस सूत्रके द्वारा संख्यात और अनन्तका प्रतिषेध किया गया है। वह असंख्यात भी परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यातके भेदसे तीन प्रकार है। उनमेंसे भी अविवक्षित असंख्यातके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
कालकी अपेक्षा भवनवासी देव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ ३६॥
___ इसके द्वारा परीतासंख्यात और युक्तासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है । इसके साथ जघन्य असंख्यातासंख्यातका भी प्रतिषेध कर दिया है, क्योंकि, उसमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है । अब अवशेष दो असंख्यातासंख्यातोंमेसे अविवक्षितके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
क्षेत्रकी अपेक्षा भवनवासी देव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं ॥ ३७॥
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