Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२७८) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ५, ८९. एदेसु असंखेज्जासंखेज्जाणं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । सेसदोअसंखेजासंखेजेसु एक्कस्सावहारणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
खेतेण वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ ८९ ॥
एदेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो, तस्स पदरस्त असंखज्जदिमागत्तविरोहादो । संखेज्जरूवाहे ओवट्टिदपदरंगुलेण जगपदरे भागे हिदे दो वि रासीओ आगच्छंति । सेसं सुगमं ।
कायजोगि-ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ९० ॥
सुगमं । अणंता ॥ ९१ ॥
एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । अणंतं पि तिविहं । तत्थ एदम्हि अणंते एदाओ रासीओ द्विदाओ त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तं भणदि
प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, इनमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिगी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है। शेष दो असंख्यातासंख्यातोंमें से एकके अवधारणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
क्षेत्रकी अपेक्षा वचनयोगी और असत्यमृपावचनयोगियों द्वारा मूच्यंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ८९ ॥
इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उसको जगप्रतरके असंख्यातवें भागपनेका विरोध है । संख्यात रूपोंसे अपवर्तित प्रतरांगुलका जगप्रतरमें भाग देनेपर दोनों ही राशियां आती हैं। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ९० ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ॥ ९१ ॥
इस सूत्रके द्वारा संख्यात व असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है। अनन्त भी तीन प्रकार है। उनमेंसे इस अनन्तमें ये जीवराशियां स्थित हैं, इसके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org