Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ५, ११८.] दवपमाणाणुगमे मदि-सुदअण्णाणीणं पमाणं [२८५
अकसाई दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ११६ ॥ सुगमं । अणंता ॥ ११७॥
एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । णवविधेसु अणतेसु कम्हि अकसाइरासी होदि ? अजहण्णाणुक्कस्सअणंताणते । कुदो ? जम्हि जम्हि अणंताणतयं मग्गिज्जदि तम्हि तम्हि अजहण्णाणुक्कस्समणंताणतयं घेत्तव्यं इदि परियम्मवयणादो। जदि अणंता. गंतयस्स गहणं तो 'अणताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि णावहिरंति कालेणेत्ति' किण्ण बुच्चदे ? ण, अदीदकालादो असंखेज्जगुणहीणाणभणवहरणविरोहादो । अणंताणंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ ति किण्ण वुच्चदे ? ण, ओसप्पिणि-उस्सप्पिणिपमाणेण कीरमाणे अणंताणंताओ ओसप्पिणि-उस्पप्पिणीओ होति त्ति जुत्तिमिद्धत्तादो ।
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी णqसयभंगो॥११८॥ अकपायी जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ११६ ॥ यह सूत्र सुगम है। अकषायी जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ॥ ११७ ॥ इस सूत्रके द्वारा संख्यात व असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है। शंका- नौ प्रकारके अनन्तोंमें किस अनन्तमें अकषायी जीवराशि है ?
समाधान-अजघन्यानुत्कृष्ट अनन्तानन्तमें अकषायी जीवराशि है, क्योंकि, 'जहां जहां अनन्तानन्तकी खोज करना हो वहां वहां अजघन्यानुत्कृष्ट अनन्तानन्तको ग्रहण करना चाहिये' ऐसा परिकर्मका वचन है।
शंका -- यदि अनन्तानन्तका ग्रहण करना है तो 'कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंसे नहीं अपहृत होते हैं ' ऐसा क्यों नहीं कहते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, अतीत कालसे असंख्यातगुणे हीन अकषायी जीवोंके अपहृत न होनेका विरोध है।
शंका--तो फिर अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीप्रमाण है, ऐसा क्यों नहीं कहते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उनके अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीप्रमाणसे करनेपर अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियां होती है, यह युक्तिसे ही सिद्ध है। .
ज्ञानमार्गणाके अनुसार मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानियोंका प्रमाण नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ ११८ ॥
१ प्रतिषु ' अणंतयं ' इति पाठः ।
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