Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ५, ८१.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादीणं पमाणं
[२७५ वणप्फदिकाइय-णिगोदजीवा बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ७९ ॥
सुगमं । अणंता ॥ ८० ॥
एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । अणतं पि तिविहं । तत्थ एदम्हि अणंते एदेसिमवट्ठाणमिदि जाणावणमुत्तरसुत्तं भणदि
__ अणंताणंताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥ ८१ ॥
एदेण परित्त-जुत्ताणताणं जहण्णअणंताणतस्स य पडिसेहो कदो । एदेसि अणंताणताणमोसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । अजहण्णुक्कस्सअणंताणतस्स गहणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
वनस्पतिकायिक जीव, निगोद जीव, वनस्पतिकायिक बादर जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म जीव, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक बादर अपर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म पर्याप्त जीव, बनस्पतिकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, निगोद बादर जीव, निगोद सूक्ष्म जीव, निगोद बादर पर्याप्त जीव, निगोद बादर अपर्याप्त जीव, निगोद सूक्ष्म पर्याप्त जीव और निगोद सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, ये प्रत्येक द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ७९ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त प्रत्येक जीवराशि द्रव्यप्रमाणसे अनन्त है ॥ ८० ॥
इस सूत्रके द्वारा संख्यात व असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है । अनन्त भी तीन प्रकार है । उनमें से इस अनन्तमें इनका अवस्थान है, इसके शापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
उपर्युक्त प्रत्येक जीवराशि कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंसे अपहत नहीं होती है ।। ८१ ॥
इस सूत्रके द्वारा परीतानन्त, युक्तानन्त, और जघन्य अनन्तानन्तका निषेध किया है, क्योंकि, इनके अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंका अभाव है । अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्तके ग्रहणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
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