Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२६४ ]
छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ५, ४५.
कुदो ? पदरस्स बेछप्पण्णं गुलसदवग्गपडिभागत्तणेण तदो विसेसाभावादो | णवरि अत्थदो विसेस अस्थि, सो जाणिय वत्तव्वो । (सोहम्मीसाण कप्पवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ४५ ॥
सुमं । ( असंखेज्जा ॥ ४६ ॥
एदेण संखेज्जस्स पडिसेहो कदो । अनंतस्स पुण पडिसेहो देवोघपरूवणादो चेत्र सिद्धो । असंखेज्जं पि पुत्तक्रमेण तिविहं । तत्येकस्सेव गहणमुत्तरमुत्तं भणदिअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि- उस्सप्पिणीहि अवहिरंति काले ॥ ४७ ॥
एदेण परित- जुत्तासं खेज्जाणं जहण्णअसंखेज्जासंखेज्जस्स य पडिसेहो कदो, तत्थ असंखेज्जासं खेज्जाणमोसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो । अवसेसेसु दोसु एक्कस्सेव गहणमुत्तरमुत्तं भणदि
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क्योंकि, जगप्रतरके दो सौ छप्पन अंगुलोंके वर्गरूप प्रतिभागपने की अपेक्षा सामान्य देवराशिसे ज्योतिषी देवराशिमें कोई विशेषता नहीं है । परन्तु अर्थसे विशेषता है, उसे जानकर कहना चाहिये । ( देखिये जीवस्थान द्रव्यप्रमाणानुगम, पृ. २६८ का विशेषार्थ )
सौधर्म व ईशान कल्पवासी देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ४५ ।। यह सूत्र सुगम है ।
सौधर्म व ईशान कल्पवासी देव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ।। ४६ ।।
इस सूत्र द्वारा संख्यातका प्रतिषेध किया गया है । अनन्तका प्रतिषेध देवोंकी ओघप्ररूपणा से ही सिद्ध है । असंख्यात भी पूर्वोक्त क्रमसे तीन प्रकार है। उनमेंसे एकके ही ग्रहण करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
सौधर्म ईशान कल्पवासी देव कालकी अपेक्षा असंख्याता संख्यात अवसर्पिणीउत्सर्पिणियों से अपहृत होते हैं ॥ ४७ ॥
इस सूत्र के द्वारा परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और जघन्य असंख्याता संख्यातका भी प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उनमें असंख्याता संख्यात अवसर्पिणी- उत्सर्पिणियोंका अभाव है । अवशेष दो असंख्यातासंख्यातों में एकके ही ग्रहण करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं-
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