Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ३, २३. उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ २३ ॥ मुगमं ।
आणदपाणद-आरणअच्चुदकप्पवासियदेवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ २४ ॥
सुगमं ।
जहण्णण मासपुधत्तं ॥२५॥
कुदो ? एदेहि बज्झमाणमणुस्साउअस्स मासपुधत्तादो हेट्ठा जहण्णहिदिबंधाभावादो । एदे मणुस्सोववाइणो मणुस्सा वि गम्भादिअवस्सेसु गदेसु अणुव्यय-महव्वयाणं गाहिणो । ण च अणुव्वय-महव्यएहि विणा एदेसुप्पत्ती अस्थि, तहोवदेसाभावादो। तदो ण मासपुधत्तं तरं जुज्जदे, किंतु वासपुधत्तंतरेण होदव्वमिदि ? एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं
अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक उक्त देवोंका देवगतिसे अन्तर होता है ॥ २३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
आनत-प्राणत और आरण-अच्युत कल्पवासी देवोंका देवगतिसे अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ २४ ॥
यह सूत्र सुगम है। कमसे कम मासपृथक्त्व तक उक्त देवोंका देवगतिसे अन्तर होता है ॥ २५ ॥
क्योंकि, आनत, प्राणत, आरण व अच्युत कल्पवासी देवों द्वारा बांधी जानेयाली मनुष्यायुका स्थितिबन्ध कमसे कम मासपृथक्त्वसे नीचे होता ही नहीं है।
शंका-जब आनत आदि चार कल्पवासी देव मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तब मनुष्य होकर भी वे गर्भसे लेकर आठ वर्ष व्यतीत हो जानेपर अणुव्रत व महाव्रतोंको ग्रहण करते हैं । अणुव्रतोंको व महाव्रतोंको ग्रहण न करनेवाले मनुष्योंकी आनत आदि देवोंमें उत्पत्ति ही नहीं होती, क्योंकि वैसा उपदेश नहीं पाया जाता। अतएव आनत आदि चार देवोंका मासपृथक्त्व अन्तर कहना युक्त नहीं है, उनका अन्तर वर्षपृथक्त्व होना चाहिये?
समाधान-उक्त शंकाका परिहार कहते हैं । वह इस प्रकार है- अणुव्रत व
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