Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ३, १०५.] एगजीवेण अंतराणुगमे मदि-सुदादिचदुणाणीणमंतर २१९
सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १०१॥
कुदो ? देवस्स हेरइयस्स वा विभंगणाणिस्स दिट्ठमग्गस्स सम्मत्तं घेत्तूण ओहिणाणेण सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय विभंगणाणं मिच्छत्तं च जुगवं पडिवण्णस्स जहणंतरुवलंभादो।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ १०२ ॥
कुदो ? विभंगणाणादो मदिअण्णाणं गंतूणतरिय आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टे परियट्टिदूण विभंगण्णाणं गदस्स तदुवलंभादो ।
___ आभिणिवोहिय-सुद-ओहि-मणपज्जवणाणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ।। १०३ ॥
सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ १.४ ॥
यह सूत्र सुगम है। विभंगज्ञानियोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १०१ ॥
क्योंकि, एक विभंगवानी देव या नारकी जीवके सन्मार्ग पाकर सम्यक्त्व ग्रहण कर अवधिज्ञान सहित कमसे कम अन्तर्मुहूर्त रहकर विभंगज्ञान और मिथ्यात्वको एक साथ प्राप्त होनेपर विभंगज्ञानका अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य अन्तर प्राप्त होता है ।
विभंगज्ञानियोंका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल
क्योंकि, विभंगहानसे मतिअज्ञानको जाकर अन्तर प्रारंभ कर आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पुद्गलपरिवर्तन परिभ्रमण कर विभंगज्ञानको प्राप्त होनेवाले जीवके विभंगज्ञानका सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १०३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
आभिनिवोधिक आदि उक्त चार ज्ञानियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है ॥१०४॥
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