Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ३, १२९.] एगजीवेण अंतराणुगमे छल्लेस्सियाणमंतर (२२९ परिवाडीए अंतरिय संजमं घेत्तूण तिसु सुहलेस्सासु देसूणपुरकोडिमच्छिय पुणो तेत्तीससागरोवमाउट्ठिदिएसु दवे सुप्पज्जिय तत्तो आगंतूण मणुस्सेसुप्पज्जिय सुक्क-पम्मतेउ-काउ-णीललेस्साओ कमेण परिणामिय किण्णलेस्साए परिणामयस्स दसअंतोमुत्तूणअट्ठवस्सेहि उणियाए पुब्बकोडियाए सादिरेयाणं तेत्तीसंसागरोवमाणं अंतरत्तेणुवलंभादो । एवं चेव णील काउलेस्साणं पि वत्तव्यं । णवरि अट्ठ-छअंतोमुहुत्तूणहवस्सेहि ऊणि याए पुव्यकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीससागरोवमाणि त्ति वत्तव्यं ।
तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिय-सुक्कलेस्सियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ १२८ ॥
सुगमं ।
जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ १२९ ॥
क्रमसे जाकर अन्तर करता हुआ, संयम ग्रहण कर तीन शुभ लेश्याओंमें कुछ कम पूर्वकोटि कालप्रमाण रहा और फिर तेतीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ । फिर वहांसे आकर मनुष्यों में उत्पन्न होकर शुक्ल, पद्म, तेज, कापोत और नीललेश्या रूप क्रमसे परिणमित हुआ और अन्तमें कृष्णलेश्यामें आगया । ऐसे जीवके दश अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षसे हीन पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण कृष्णलेश्याका अन्तरकाल प्राप्त होता है। इसी प्रकार नीललेल्या और कापोतलेश्याके उत्कृष्ट अन्तरकालका प्ररूपण करना चाहिये । विशेषता केवल इतनी है कि नीललेश्याका अन्तर कहते समय आठ और कापोत लेश्याका अन्तर कहते समय छह अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षसे हीन पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण अन्तरकाल बतलाना चाहिये।
तेजलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्यावाले जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ १२८ ॥
यह सूत्र सुगम है।
तेज, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तमात्र होता है ॥ १२९ ॥
१ अ-आप्रत्योः · अंतोमुहुत्तेऊण ' इति पाठः ।
२ तेजःपद्मशुक्ललेश्यानामेकशः अंतरं जघन्येनांतर्मुहूर्तः, उत्कर्षेणानंतः कालोऽसंख्येयाः पुद्गलपरिवर्ताः । त.रा. ४, २२, १०. ते उतियाणं एवं णवरि य उक्करसविरहकालो दु। पोग्गलवरिवद्वा हु असंखेज्जा होति णियमेण ॥ गो. जी. ५५३.
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