Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ४, ९. ]
गाणाजी िमंगविचयाणुगमे इंदिय-काय मग्गणा
दो ? सव्वकाले अस्थित्तणेण तेहिमेदेसिं भेदाभावादो ।
इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता णियमा अस्थि ॥ ७ ॥
कुदो ! एदेसिं पवास तिसु वि कालेतु बोच्छेदाभावादो । asiदियतेइंदिय च उरिंदिय-पंचिंदिय पज्जत्ता अपज्जत्ता नियमा अस्थि ॥ ८ ॥
सुगमं ।
कायावादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणफदिकाइया णिगोदजीवा बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता अपज्जत्ता णियमा अस्थि ॥ ९ ॥
एदासि मग्गणाणं मग्गणविसेसाणं च पवाहस्स वोच्छेदाभावादो ।
नहीं है
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क्योंकि, सर्व कालोंमें अस्तित्वकी अपेक्षा इनका सामान्य देवोंसे कोई भेद
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हैं ॥ ७ ॥
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इन्द्रियमार्गणा के अनुसार एकेन्द्रिय बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त जीव नियमसे
क्योंकि, इनके प्रवाहका तीनों ही कालोंमें व्युच्छेद नहीं होता ।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्त नियमसे हैं ॥ ८ ॥
काय मार्गणानुसार पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, चनस्पतिकायिक निगोदजीव बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त, तथा बादर वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त, एवं जसकायिक, जसकायिक पर्याप्त अपर्याप्त जीव नियमसे हैं ।। ९ ।।
क्योंकि, इन मार्गणाओं व मार्गणाविशेषोंके प्रवाहका व्युच्छेद नहीं होता।
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