Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२४२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ४, १६. सुहुमसांपराइयसंजदा सिया अस्थि सिया पत्थि ॥१६॥ एदं पि सुगमं ।
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी अचखुदंसणी ओहिदंसणी केवलदसणी णियमा अत्थि ॥ १७॥
एदं पि सुगमं ।
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिया गीललेस्सिया काउलेस्सिया तेउलेस्सिया पम्मलेस्सिया सुक्कलेस्सिया णियमा अस्थि ॥ १८ ॥
सुगमं ।
भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया णियमा अस्थि ॥१९॥
सिद्धिपुरवंकदा भविया णाम, तबिवरीया अभविया णाम । सिद्धा पुण ण भविया ण च अभविया, तबिवरीयसरूवत्तादो। तहा ते वि णियमा अस्थि ति किण्ण
सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत कदाचित् हैं भी और कदाचित् नहीं भी हैं ॥ १६ ॥ यह सूत्र भी सुगम है।
दर्शनमार्गणानुसार चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी नियमसे हैं ॥१७॥ . यह सूत्र भी सुगम है।
लेश्यामार्गणानुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और शुक्ललेश्यावाले नियमसे हैं ॥ १८ ॥
यह सूत्र सुगम है। भव्यमार्गणानुसार भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक नियमसे हैं ॥१९॥
सिद्धिपुरस्कृत अर्थात् मुक्तिगामी जीवोंको भव्य और इनसे विपरीत जीवोंको अभव्य कहते हैं । सिद्ध जीव न तो भव्य ही हैं और न अभव्य भी हैं, क्योंकि, उनका स्वरूप भव्य और अभव्य दोनोंसे विपरीत है।
शंका-भव्य व अभव्योंके समान 'सिद्ध भी नियमसे हैं ' इस प्रकार क्यों
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