Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५० छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ५, १४. जहाकमेण विदिय-तदिय-चउत्थ-पंचम छट्ठ-सत्तमपुढविदयपमाणं होदि । कधमेत्तियाणं चेव सेडिवग्गमूलाणमण्णोण्णब्भासादो एदिस्से एदिस्से पुढवीए दव्वं होदि त्ति णव्वदे ? ण, आइरियपरंपरागदअविरुद्धोवदेसेण तदवगमादो । उत्तं च
* बारस दस अट्ठेव य मूला छ त्तिग दुगं च गिरएसु ।
एक्कारस णव सत्त य पण य चउक्कं च देवेसु ॥ १॥ तिरिक्खगदीए तिरिक्खा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १४ ॥ एदमासंकासुत्तं संखेज्जासंखेज्जाणंताणि अवेक्खदे । अणंता ॥ १५॥
एदेण संखेज्ज-असंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । तं च अणतं परित्त-जुत्त-अणंतागंतभेएण तिवियप्पं । तत्थ एदम्हि अणते तिरिक्खा विदा ति जाणावणमुवरिल्लसुत्तमागदं
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राशियों का परस्पर गुणा करनेपर यथाक्रमसे द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और सप्तम पृथिवीके द्रव्यका प्रमाण होता है।
शंका- इतने ही जगश्रेणीवर्गमूलोंके परस्पर गुणनसे इस इस पृथिवीका द्रव्य होता है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, आचार्यपरम्परागत अविरुद्ध उपदेशसे उसका शान प्राप्त है। कहा भी है
नरकोंमें द्वितीयादि पृथिवियोंका द्रव्यप्रमाण लानेके लिये जगश्रेणीका बारहवां, दशवां, आठवां, छठा, तीसरा और दूसरा वर्गमूल अवहारकाल है । तथा देवों में सानत्कुमारादि पांच कल्पयुगलोंका द्रव्यप्रमाण लानेके लिये जगश्रेणीका ग्यारहवां, नौवां, सातवां, पांचवां और चौथा वर्गमूल अवहारकाल है ॥ १॥
तिर्यंचगतिमें तिथंच जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १४ ॥ यह आशंकासूत्र संख्यात, असंख्यात और अनन्तकी अपेक्षा रखता है। तिर्यंचगतिमें तिर्यंच जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ॥ १५॥
इस सूत्रसे संख्यात और असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है। वह अनन्त भी परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्तके भेदसे तीन प्रकार है। उनमेंसे इस अनन्तमें तिर्यंच जीव स्थित हैं इसके ज्ञापनार्थ उपरिम सूत्र प्राप्त होता है
१ प्रतिषु ' -भेएणेतिवियप्पं ' इति पाठः ।
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