Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५६ ]
छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ३, २६.
रूवृणपरित्ताणं तत्तविरोहादो' । सेसेसु दोसु एक्कस्स अवणयणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि -- तिस्से सेडीए आयामो असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ ॥ २६ ॥
एदेण जहण्णअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो । कुदो ? तत्थ असंखेज्जाणं जोयकोडीणमभावादो । असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ वि अणेयवियपाओ त्ति काऊण पिच्छयाभावादो तत्थ सुड्डु णिच्छबु पायणमुत्तरमुत्तं भणदि
मणुस - मणुस अपज्जत्तएहि रूवं रूवापक्खित्तएहि सेडी अवहिरदि अंगुलवग्गमूलं तदियवग्गमूलगुणिदेण ॥ २७ ॥
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सूचिअंगुल पढमवग्गमूलं तस्सेव तदियवग्गमूलेण गुणिय सलागभूदं ठचिय रूवाहियमणुस्सरासिपमाणेण सेडि अवहिरिज्जदि । किमहं रूत्रस्त पक्खेवो कीरदे ? कदजुम्माए सेडीए तेजोजमणुसरा सिम्हि अवहिरिज्जमाणे अवहारसलागमे तरूवाण
जगश्रेणी के एक कम परीतानन्तपनेका विरोध है । अब शेष दो असंख्याता संख्यातों में से एकका निषेध करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
उस जगश्रेणीके असंख्यातवें भागकी श्रेणी अर्थात् पंक्तिका आयाम असंख्यात योजनकोटि है || २६ ॥
इसके द्वारा जघन्य असंख्याता संख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उसमें असंख्यात योजनकोटियोंका अभाव है । असंख्यात योजनकोटियों के भी अनेक विकल्परूप होने से निश्चयका अभाव है, अतः उनमें भले प्रकार निश्चयोत्पादनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं—
सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको उसके ही तृतीय वर्गमूलसे गुणित करनेपर जो लब्ध आवे उसे शलाकारूपसे स्थापित कर रूपाधिक मनुष्यों और रूपाधिक मनुष्य अपर्याप्तों द्वारा जगश्रेणी अपहृत होती है ।। २७ ॥
सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको उसके तृतीय वर्गमूलसे गुणित करके लब्ध राशिको शलाकारूप स्थापित कर रूपाधिक मनुष्यप्रमाणसे जगश्रेणी अपहृत होती है । शंका- - रूपका प्रक्षेप किसलिये किया जाता है ?
समाधान - चूंकि जगश्रेणी कृतयुग्म राशिरूप है । अतएव उसमेंसे तेजोबराशिरूप मनुष्यराशिके अपहृत करनेपर अवहारशलाकामात्र शेष रहे रूपोंको घटाने के
१ प्रतिषु परिचाणतत्थविरोहादो' इति पाठ: ।
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