Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ४, २३.] णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमे आहारमग्गणा [२०३ वुत्तं १ ण, बंधयाहियारे सिद्धाणमबंधयाणं संभवामावादो। सेसं सुगमं ।
___सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठी वेदगसम्माइट्ठी (खइयसम्माइट्ठी) मिच्छाइट्टी णियमा अत्थि ॥ २० ॥
सुगमं ।
उवसमसम्माइट्टी ( सासण- ) सम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्टी सिया अत्थि, सिया णत्थि ॥ २१ ॥
कुदो ? एदेसि तिहं मग्गणावयणाणं सांतरसरूवत्तदसणादो । सणियाणुवादेण सण्णी असण्णी णियमा अस्थि ॥ २२ ॥ सुगमं । आहाराणुवादेण आहारा अणाहारा णियमा अस्थि ॥ २३ ॥ एवं पि सुगमं ।
एवं णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो समत्तो ।
नहीं कहा?
समाधान नहीं, क्योंकि बंधकाधिकारमें अबंधक सिद्धोंकी संभावनाका अभाव है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
सम्यक्त्वमार्गणानुसार सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि नियमसे हैं ॥ २० ॥
यह सूत्र सुगम है।
उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्याग्मथ्यादृष्टि कदाचित् हैं भी और कदाचित् नहीं भी ॥ २१ ॥
क्योंकि, इन तीन मार्गणाप्रभेदोंका सान्तर स्वरूप देखा जाता है । संज्ञिमार्गणानुसार संज्ञी और असंज्ञी जीव नियमसे हैं ॥ २२ ॥ यह सूत्र सुगम है। आहारमार्गणानुसार आहारक और अनाहारक जीव नियमसे हैं ॥ २३ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। । इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगम समाप्त हुआ।
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