Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
। २, ४, ३. तिरिक्खगदीए तिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता मणुसगदीए मणुसा मणुसपज्जत्ता मणुसणीओ णियमा अस्थि ॥३॥
___ कुदो ? तीदाणागद-वट्टमाणकालेसु एदासिं मग्गणाणं मग्गणविसेसाणं च गंगापवाहस्सेव वोच्छेदाभावादो।
मणुसअपज्जत्ता सिया अस्थि सिया पत्थि ॥४॥
मणुसअपज्जत्ताणं कयावि अत्थित्तं होदि कयावि ण होदि। कुदो ? सहावदो । को सहावो णाम ? अभंतरभावो।।
देवगदीए देवा णियमा अस्थि ॥५॥ कुदो ? तिसु वि कालेसु देवाणं विरहामावादो। एवं भवणवासियप्पहुडि जाव सबट्टसिद्धिविमाणवासियदेवेसु
तिर्यंचगतिमें तिथंच, पंचेन्द्रिय तिथंच, पंचेन्द्रिय तियं च पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिथंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त, तथा मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी नियमसे हैं ॥ ३ ॥
क्योंकि अतीत, अनागत व वर्तमान कालों में इन मार्गणाओं व मार्गणाविशेषोंका गंगाप्रवाहके समान व्युच्छेद नहीं होता।
मनुष्य अपर्याप्त कदाचित् है भी, और कदाचित् नहीं भी हैं ॥ ४ ॥
क्योंकि, मनुष्य अपर्याप्तोंका कदाचित् अस्तित्व होता है और कदाचित् नहीं होता, क्योंकि ऐसा स्वभाव ही है ।
शंका-स्वभाव किसे कहते हैं ?
समाधान-आभ्यन्तरभावको स्वभाव कहते हैं। अर्थात् वस्तु या वस्तुस्थितिकी उस व्यवस्थाको उसका स्वभाव कहते हैं जो उसका भीतरी गुण है और बाह्य परिस्थितिपर अवलम्बित नहीं है।
देवगतिमें देव नियमसे हैं ॥५॥ क्योंकि, तीनों ही कालोंमें देवोंके विरहका अभाव है। इसी प्रकार भवनवासियों से लेकर सर्वार्थसिद्धिविमानवासियों तक देव नियम से
१ प्रतिषु पन्जत्ताणं' इति पाठः।
२ प्रतिषु — अच्चंताभावो ' इति पाठ ।।
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