Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२०६१
छक्खडागमे खुदाबंधों
[ २, ३, ६२.
कुदो ? मणजोगादो वचिजोगं गंतूण तत्थ सव्बुक्कस्समद्धमच्छिय पुणो कायजोगं गंतूर्ण तत्थ वि सव्वचिरं कालं गमिय एइंदिएसुप्पज्जिय आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टणाणि परियट्टिय पुणो मणजोगं गदस्स तदुचलंभादो । सेसचत्तारिमणजोगीणं पंचत्रचिजोगीणं च एवं चेत्र अंतरं परूवेदव्वं, विसेसाभावादो । कायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ६२ ॥
सुमं ।
जहणेण एगसमओ ॥ ६३ ॥
कुदो ? कायजोगादो मणजोगं बचिजोगं वा गंतॄण एगसमय मच्छिय विदियसमए मुदे वाघादिदे वा कायजोगं गदस्स एगसमय अंतरुचलं भादो ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ६४ ॥
कुदो ? कायजोगादो मणजोगं वचिजोगं च परिवाडीए गंतृण दोसु वि सन्बुकस्सकालमच्छिय पुणो कायजोगमागदस्स अंतोमुहुत्तमेतं तरुत्रलंभादो ।
क्योंकि, मनयोगसे वचनयोग में जाकर वहां अधिक काल तक रहकर पुनः काययोग में जाकर और वहां भी सबसे अधिक काल व्यतीत करके एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पुद्गलपरिवर्तन परिभ्रमण कर पुनः मनयोगमें आये हुए जीवके उक्त प्रमाण अन्तरकाल पाया जाता है ।
शेष चार मनयोगी और पांच वचनयोगी जीवोंका भी इसी प्रकार अन्तर प्ररूपित करना चाहिये, क्योंकि, इस अपेक्षासे उनमें कोई विशेषता नहीं है। काययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ।। ६२ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
कमसे कम एक समय तक काययोगी जीवोंका अन्तर होता है ॥ ६३ ॥
क्योंकि, काययोगसे मनयोग में या वचनयोगमें जाकर एक समय रहकर दूसरे समय में मरण करने या योगके व्याघातित होनेपर पुनः काययोगको प्राप्त हुए जीवके एक समयका जघन्य अन्तर पाया जाता है ।
काययोगी जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त होता है ॥ ६४ ॥
क्योंकि, काययोगसे मनयोग और वचनयोगमें क्रमशः जाकर और उन दोनों ही योगों में उनके सर्वोत्कृष्ट काल तक रहकर पुनः काययोगमें आये हुए जीव के अन्तर्मुहूर्तप्रमाण काययोगका अन्तर प्राप्त होता है ।
१ अप्रतौ ' मोत्तूण ' इति पाठः ।
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