Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, ३, ७२.] एगजीवेण अंतराणुगमे वेउब्धियमिस्सकायजोगीणमंतरं [२०९
जहण्णेण एगसमओ ॥ ६९ ॥
वेउब्धियकायजोगादो मणजोगं वचिजोग वा गंतूण तत्थ एगसमयमच्छिय विदियसमए वाघादवसेण वेउब्धियकायजोगं गदस्स तदुवलंभादो ।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ ७० ॥ अंतरस्स पाहणियादो एगवयणं णव॒सयत्तं च जुज्जदे । सेसं सुगमं । वेउब्वियमिस्सकायजोणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि?॥७१॥ सुगमं । जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि ॥ ७२ ॥
कुदो ? तिरिक्खेहितो मणुस्सेहिंतो वा देवेसु णेरइएसु वा उप्पज्जिय दीहकालेण छप्पज्जत्तीओ समाणिय वेउनियकायजोगेण अंतरिय देमणदसवाससहस्साणि अच्छिय तिरिक्खेसु मणुस्सेसु वा उप्पज्जिय सव्वजहण्णेण कालेण पुणो आगंतूण वेउव्वियमिस्सं
वैक्रियिककाययोगियोंका जघन्य अन्तर एक समय है ॥ ६९ ॥
क्योंकि, वैक्रियिककाययोगसे मनयोग या वचनयोगमें जाकर वहां एक समय तक रहकर दसरे समयमें उस योगका व्याघात होजानेके कारण वैक्रियिकक जानेवाले जीवके एक समयप्रमाण वैक्रियिककाययोगका अन्तर पाया जाता है ।
वैक्रियिककाययोगियोंका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल है ॥ ७० ॥
सूत्र में जो अनन्तकाल व असंख्यातपुद्गलपरिवर्त इन दोनों शब्दोंमें एकवचन और नपंसकलिंगका उपयोग किया गया है वह अन्तरकी प्रधानता ब है और इसलिये उपयुक्त ही है । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ७१ ॥ यह सूत्र सुगम है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका जघन्य अन्तर कुछ अधिक दश हजार वर्ष होता है ॥ ७२ ॥
____ क्योंकि, तिर्यंचोंसे अथवा मनुष्योंसे देवों या नारकियों में उत्पन्न होकर दीर्घ काल द्वारा छह पर्याप्तियां पूरी कर वैक्रियिककाययोगके द्वारा वैक्रियिकमिश्रकाययोगका अन्तर करके, कुछ कम दश हजार वर्ष तक वहीं रहकर, तिर्यंचों अथवा मनुष्योंमें उत्पन्न हो, सबसे कम कालमें पुनः देव या नारक गतिमै आकर वैक्रियिकमिश्रयोगको प्राप्त
१ अ-आप्रयो; ' उप्पजतिओ'; कापतो 'ओप्पज्जतीओ ' इति पाठः ।
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