Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, २, १४९.] एमजीवेण कालाणुगमे संजदादिकालपरूवणं (१६७
सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १४८ ॥
कुदो ? संजमं परिहारसुद्धिसंजमं संजमासंजमं च गंतूण जहण्णकालमच्छिय अण्णगुणं गदेसु तदुयलंभादो ।
उपकस्सेण पुब्बकोडी देसूणा ॥ १४९॥
कुदो ? मणुस्सस्स गम्भादिअट्ठवस्सेहि संजमं पडियज्जिय देसूणपुबकोडिं संजममणुपालिय कालं काऊण देवेसुप्पण्णस्स देसूणपुवकोडिमेत्तसंजमकालुवलंभादो । एवं परिहारसुद्धिसंजदस्स वि उकासकालो वत्तव्यो । णवीर सव्वसुही होदूण तीसं वस्साणि गमिय तदो वासपुधत्तेण तित्थयरपादमूले पच्चक्खाणणामधेयपुव्वं पढिदण पुणो पच्छा परिहारसुद्धिसंजमं पडिवज्जिय देसूणपुरकोडिकालमच्छिदूण देवेसुप्पण्णस्स वत्तव्वं । एवमट्टतीसवस्सेहि ऊणियां पुव्यकोडी परिहारसुद्धिसंजमस्स कालो वुत्तो। के वि आइरिया सोलसवस्सेहि के वि बावीसवस्सेहि ऊणिया पुनकोडि ति भणंति । एवं संजदासजस्स वि उक्कस्सकालो वत्तव्यो । णवीर अंतोमुहुत्तपुधत्तेण ऊणिया
यह सूत्र सुगम है। कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव संयत आदि रहते हैं ॥ १४८ ॥
क्योंकि संयम, परिहारशुद्धिसंयम और संयमासंयमको प्राप्त होकर व जघन्य काल तक रहकर अन्य गुणस्थानको प्राप्त होनेपर वह सूत्रोक्त काल पाया जाता है।
अधिकसे अधिक कुछ कम पूर्वकोटि काल तक जीव संयत आदि रहते हैं ॥ १४९ ॥
क्योंकि, गर्भसे लेकर आठ वर्षांसे संयमको प्राप्त कर और कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष तक संयमका पालन कर व मरकर देवोंमें उत्पन्न हुए मनुष्यके कुछ कम पूर्वकोटिमात्र संयमकाल पाया जाता है । इसी प्रकार परिहारशुद्धिसंयतका भी उत्कृष्ट काल कहना चाहिये । विशेष इतना कि सर्वसुखी होकर तीस वर्षोंको विताकर, पश्चात् वर्षपृथक्त्वसे तीर्थकरके पादमूल में प्रत्याख्यान नामक पूर्वको पढ़कर पुनः तत्पश्चात् परिहारशुद्धिसंयमको प्राप्त कर और कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष तक रहकर देवों में उत्पन्न हुए जीवके उपर्युक्त कालप्रमाण कहना चाहिये । इस प्रकार अड़तीस वर्षों से कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण परिहारशुद्धिसंयमका काल कहा गया है। कोई आचार्य सोलह वर्षोंसे और कोई बाईस वर्षों से कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण कहते हैं। इसी प्रकार संयतासयतका भी उत्कृष्ट काल कहना चाहिये । विशेष यह कि अन्तर्मुहूर्तपृथक्त्वसे कम पूर्यकोटि वर्ष
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