Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१७४ ]
छडागमे खुदाबंधो
[ २, २, १७६.
कुदो ! ओहिणाणिस्सेव जहणेण अंतोमुहुत्तस्स, उक्कस्सेण सादिरेयछावद्विसागमाणमुवलंभादो ।
केवलसणी केवलणाणीभंगो ॥ १७६ ॥
कुदो ? केवलणाणीणं (व) जहण्णुक्कस्सपदेहि अंतोमुहुत्त - देमूण पुत्र कोडीणं केवलदंसणीणमुवलं भादो ।
लेस्सावादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय- काउलेस्सिया केव चिरं कालादो होंति ? ।। १७७ ॥
सुगमं ।
जहणेण अंतोमुत्तं ॥ १७८ ॥
दो ! अप्पिदले सादो अविरुद्धादो अप्पिदलेस्समागंतूण सव्त्रजहणमंतो मुहुतमच्छिय अविरुद्ध लेस्संतरं गयस्स तदुवलंभादो | उक्कस्सेण तेत्तीस सत्तारस-सत्तसागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ १७९ ॥
क्योंकि, अवधिज्ञानी के समान अवधिदर्शनका भी कमसे कम अन्तर्मुहूर्त और अधिक से अधिक सातिरेक छ्यासठ सागरोपम काल पाया जाता है ।
केवलदर्शनीकी कालप्ररूपणा केवलज्ञानीके समान है ॥ १७६ ॥
क्योंकि, केवलज्ञानियोंके समान केवलदर्शनी जीवोंका भी जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि पाया जाता है ।
लेश्यामार्गणानुसार जीव कृष्णलेश्या, नीललेश्या व कापोतले यावाले कितने काल तक रहते हैं ? ॥। १७७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव कृष्णलेश्या, नीललेश्या व कापोतलेश्यावाले रहते हैं ।। १७८ ॥
क्योंकि, अविवक्षित अविरुद्ध लेक्ष्यासे विवक्षित लेश्यामें आकर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त काल रहकर अन्य अविरुद्ध लेश्यामें जानेवाले जीवके उक्त लेश्याओंका अन्तर्मुहर्त काल प्राप्त होता है ।
अधिक से अधिक सातिरेक तेतीस, सत्तरह व सात सागरोपम काल तक जीव कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावाले रहते हैं ॥ १७९ ॥
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