Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७८]
छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, १, ३४.
कम्मोदइल्लस्स वचिजोगस्सुवलंभा खओवसमिओ वचिजोगो । वीरियंतराइयस्स सव्वघादिफदयाणं संतोवसमेण देसघादिफदयाणमुदएण कायजोगुवलंभादो खओवसमिओ कायजोगो ।
अजोगी णाम कथं भवदि ? ॥ ३४ ॥
एत्थ णय-णिक्खेवेहि अजोगित्तस्स पुव्यं व चालणा कायच्या | खइयाए लडीए || ३५ ॥
जोगकारणसरीरादिकम्माणं णिम्मूलखएणुप्पण्णत्तादो खइया लद्धी अजोगस्स । वेद dergarte इत्थवेदो पुरिसवेदो णवुंसयवेदो णाम कधं भवदि ? ।। ३६ ।।
किमोदइएण भावेण किमुवसमिएग किं खइएण किं पारिणामिएण भावेणेत्ति बुद्धीए काऊण इत्थवेदादओ कधं होदिति वृत्तं । एवंविहसंसयविणासणङ्कमुत्तरमुत्तं भणदि
नामकर्मोदय सहित जीवके वचनयोग पाया जाता है, इसीसे वचनयोग भी क्षायोपशमिक है ।
वीर्यान्तरायकर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके सत्त्वोपशम से व देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे काययोग पाया जाता है, इसीसे काययोग भी क्षायोपशमिक है ।
जीव अयोगी कैसे होता है ? || ३४ ॥
यहां भी नयों और निक्षेपोंके द्वारा अयोगित्वकी पूर्ववत् चालना करना चाहिये । क्षायिक लब्धि जीव अयोगी होता है || ३५ ॥
योग के कारणभूत शरीरादिक कर्मोंके निर्मूल क्षयसे उत्पन्न होनेके कारण अयोगी लब्धि क्षायिक है ।
वेदमार्गणानुसार जीव स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी कैसे होता है ? || ३६॥
क्या औदयिक भावसे, कि औपशमिक भावसे, कि क्षायिक भावसे, कि पारिणामिक भाव से जीव स्त्रीवेदी आदि होता है ? ऐसा मनमें विचार कर 'स्त्रीवेदी आदि कैसे होता है ' यह प्रश्न किया गया है । इस प्रकारके संशयका विनाश करनेके लिये आचार्य आगेका सूत्र कहते हैं -
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