Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१५०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, ९२. सुगममेदं पि ।
उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेण भहियाणि बे सागरोवमसहस्साणि ॥ ९२ ॥
तसकाइयाणं पुनकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि बे सागरोवमसहस्साणि, तेसिं पज्जताणं वे सागरोवमसहस्सं चेव । कुदो ? जहासंखणायादो ।
तसकाइयअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ९३ ॥
सुगमं ।
जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ९४ ॥ सुगमं । उक्कस्सेण अंतोमुहृत्तं ॥ ९५ ॥ एदं पि सुगमं ।
यह मूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो सागरोपमसहस्र और केवल दो सागरोपमसहस्र काल तक जीव क्रमशः त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त रहते हैं ॥ ९२ ॥
सकायिकोंका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्यसे अधिक दो सागरोपमसहस्र और प्रसकायिक पर्याप्तोंका केवल दो सागरोपमसहस्त्र ही है, क्योंकि, यहां यथासंख्यन्याय लगता है।
जीव त्रसकायिक अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ९३ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्र भवग्रहण काल तक जीव त्रसकायिक अपर्याप्त रहते हैं ॥१४॥ यह सूत्र सुगम है। अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव त्रसकायिक अपर्याप्त रहते
यह सूत्र भी सुगम है।
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