Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१०२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ५७. - परमाणुादियाई परमाण्वादिकानि अंतिमखधं ति आ पश्चिमस्कंधादिति मुसिदध्वाइं मूर्तिद्रव्याणि जं यस्मात् पस्सदि पश्यति जानीते ताणि तानि पञ्चक्खं साक्षात् तं तत् ओहिदसणं अवधिदर्शनमिति द्रष्टव्यम् । परमाणुमादि कादण जाव पच्छिमखंधो त्ति द्विदपोग्गलदवाणमवगमादो पञ्चक्खादो जो पुवमेव सुवसत्तीविसयउवजोगो ओहिगाणुप्पत्तिणिमित्तो तं ओहिदसणमिदि घेत्तव्वं, अण्णहा णाण-दंसणाणं भेदाभावादो। कचं केवलणाणण केवलदंसणं समाणं ? ण, णेयप्पमाणकेवलणाणभेएण भिण्णप्पविसयउवजोगस्स वि तत्तियमेतत्ताविरोहादो ।
खओवसमियाए लद्धीए ॥५७॥
चक्खुदंसणावरणस्स देसघादिफद्दयाणमुदएण समुप्पण्णत्तादो (चक्खुदंसणं खओवसमियं)। कधमुदयगददेसघादिफद्दयाण खओवसमियत्तं ? उच्चदे- उदयम्मि पदणकाले सम्बघादिफहयाणं जमणंतगुणहीणतं सो तेसिं खओ णाम; देसघादिफद्दयाणं सरूवेण
द्वितीय गाथाका अर्थ इस प्रकार है-'परमाणुसे लगाकर अन्तिम स्कंधपर्यन्त जितने मूर्तिक द्रव्य हैं उन्हें जिसके द्वारा साक्षात् देखता है या जानता है वह अवधिदर्शन है, ऐसा जानना चाहिये' । परमाणुसे लेकर अन्तिम स्कंधपर्यंत जो पुद्गलद्रव्य स्थित हैं उनके प्रत्यक्ष ज्ञानसे पूर्व ही जो अवधिज्ञानकी उत्पत्तिका निमित्तभूत स्वशक्तिविषयक उपयोग होता है वही अवधिदर्शन है ऐसा ग्रहण करना चाहिये, अन्यथा ज्ञान और दर्शनमें कोई भेद नहीं रहता।
शंका-केवलशानसे केवलदर्शन समान किस प्रकार होता है?
समाधान-क्यों न हो, क्योंकि, जानने योग्य पदार्थके प्रमाणानुसार केवलजानके भेदसे भिन्न आत्मविषयक उपयोग को भी तत्प्रमाण मानने में कोई विरोध नहीं आता।
क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी होता है ॥५७॥
चक्षुदर्शनावरणके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे उत्पन्न होनेके कारण चक्षुदर्शन भायोपशमिक होता है।
शंका-उदयमें आये हुए देशघाती स्पर्धकोंके क्षायोपशमिक भाव कैसे हुआ?
समाधान-बताते हैं। उदयमें आकर गिरनेके समयमें सर्वघाती स्पर्धकोंका को भनन्तगुण हीन हो जाना है वही उनका भय है, और देशघाती स्पर्धकोंके स्वरूपसे
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