Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, २, ६४.] एमजीवेण कालाणुगमे वियलिदियकालपरूवणं
सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं ॥ ६१ ॥
एत्थ जहाकमेण बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदियाणं सगंतब्भूदअपज्जत्तसंभवादो खुदाभवग्गहणमेदेसिं चेव पज्जत्ताणमंतोमुहुतं, तत्थ अपज्जत्ताणमभावाद।।
उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ॥ ६२॥
अणप्पिदिदिएहितो आगंतूण बारसवास-एगुणवण्णरादिंदिय-छम्मासाउएसु बीईदिय-तीइंदिय-चउरिदिएसुप्पज्जिय बहुवारं तत्थेव परियट्टिय णिग्गयस्त वुत्तकालसंभवादो।
बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदियअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥६३॥
सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ६४ ॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल व अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव विकलत्रय ३ विकलत्रय पर्याप्त होते हैं ॥ ६१ ॥
. यहां क्रमानुसार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में उनके अपर्याप्तीका भी अन्तर्भाव है, अतएव उन्हीं अपर्याप्तोंकी अपेक्षा उनका कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल होता है । उन्हीं द्वीन्द्रियादिक जीवोंके पर्याप्तोंका काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, उनमें अपर्याप्तोंका अभाव है। ___अधिकसे अधिक संख्यात हजार वर्षों तक जीव विकलत्रय व विकलत्रय पर्याप्त होते हैं ॥ ६२ ॥
अविवक्षित इन्द्रियवाले जीवों से आकर बारह वर्ष, उमंचास रात्रिदिन तथा छह मासकी आयुवाले द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जीवोंमें उत्पन्न होकर बहुत वार उन्हीं पर्यायोंमें परिभ्रमण करके निकलनेवाले जीवके सूत्रोक्त कालका होना संभव है।
जीव द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त व चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ६३ ॥
यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्र भवग्रहण काल तक जीव विकलत्रय अपर्याप्त रहते हैं ॥६॥
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