Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२४ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, १८. अणप्पिदेहितो आगंतूण पंचिंदिय (-तिरिक्ख-) अपजत्तएसु उप्पन्जिय सव्वजहण्णकालेण भुंजमाणाउअं कदलीघादेण घादिय खुद्दाभवग्गहणमच्छिय णिप्पिडिदस्स एतदुवलंभादो । पंचिंदियतिरिक्खपजत्तएसु कदलीघादेण घादिदर्भुजमाणाउएसु खुद्दाभवग्गहणकालो किमिदि णोवलब्भदे ? ण, तत्थ अइसुघादं पत्तस्स वि भुंजमाणाउअस्स अंतोमुहुत्तस्स हेवदो पदणाभावा । देव-णेरइएसु खुद्दाभवग्गहणमेत्ता अंतोमुहुत्तमेत्ता वा आउद्विदी किण्ण लब्भदे ? ण, तत्थ दसहं वस्ससहस्साणं हेढदो आउअस्स बंधाभावा, तत्थतणमुंजमाणाउअस्स कदलीघादाभावादो च ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १८ ॥
कुदो ? अणप्पिदेहितो आगंतूण पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्तएसु उप्पज्जिय सव्वुक्कस्सियं भवहिदिमच्छिय णिप्पिडिदस्स वि अंतोमुहुत्तादो अहियकालस्साणुवलंभा।
क्योंकि, किन्हीं भी अविवक्षित पर्यायोंसे आकर पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकों में उत्पन्न होकर व सर्वजघन्य कालसे भुज्यमान आयुको कदलीघातसे नष्ट करके क्षुद्रभवग्रहणकालमात्र जीकर निकल जानेवाले जीवके सूत्रोक्त काल पाया जाता है।।
शंका-कदलीघातसे भुज्यमान आयुको नष्ट करनेवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तकोंमें क्षुद्रभवग्रहणमात्र काल क्यों नहीं पाया जाता?
समाधान नहीं पाया जाता, क्योंकि, पर्याप्तकोंमें अत्यन्त शीघ्र आयुका घात करनेवाले जीवके भी भुज्यमान आयुका अन्तर्मुहूर्तकालसे कममें नष्ट होना संभव नहीं है।
शंका-देव और नारकी जीवोंमें क्षुद्रभवग्रहणमात्र अथवा अन्तर्मुहूर्तमात्र आयुस्थिति क्यों नहीं पायी जाती ?
समाधान नहीं पायी जाती, क्योंकि, देव और नारकियों सम्बन्धी आयुका बंध दश हजार वर्षसे कम नहीं होता, और उनकी भुज्यमान आयुका कदलीघात भी नहीं होता।
अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव पंचेन्द्रिय तिथंच अपर्याप्त रहते है ॥ १८॥
क्योंकि, किन्हीं भी अविवक्षित पर्यायोंसे आकर पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकों में उत्पन्न होकर और वहां सर्वोत्कृष्ट भवस्थितिमात्र काल तक रहकर निकलनेवाले जीवके भी अन्तर्मुहूर्तसे अधिक काल नहीं पाया जाता।
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